________________ कामसमुद्देशः . ऐश्वर्य की सफलता(इन्द्रियमनः प्रसादनफला हि विभूतयः // 6 // ऐश्वयं का फल इन्द्रियों और मन की प्रसन्नता है / जिस ऐश्वर्य से अपनी इंद्रियां और मन प्रसन्न न रह सके वह ऐश्वर्य व्यर्थ है। अजितेन्द्रिय होने का दोष(नाजितेन्द्रियाणां कापि कार्यसिद्धिरस्ति // 7 // ) जिन की इन्द्रियां वश में नहीं हैं, उनको किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती। इन्द्रिय जय का स्वरूप( इष्टेऽर्थेऽनासक्तिविरुद्ध चाप्रवृत्तिरिन्द्रियजयः // 8 // प्रिय वस्तु में अधिक आसक्त न होना और प्रतिकूल में प्रवृत्त न होने का माम इन्द्रिय जय है। विशेषार्थ-प्रतिकूल कार्य में मनुष्य स्वभावत: नहीं प्रवृत्त होता उसके विषय में यहां विशेष रूप से लिखने का तात्पर्य "कामसमुदेश" प्रकरण की दृष्टि से यह है कि प्रिय प्रेयसी पर अधिक अनुरक्त न होना और प्रतिकूल परदारा के सेवन में प्रवृत्त ही न होना वास्तविक इन्द्रिय विजय है / अथवा प्रिय पर अधिक अनुरक्त न होना और प्रतिकूल से घबड़ाना नहीं इन्द्रियजय का लक्षण है। अर्थशाल.के अध्ययन से "इन्द्रियजय" (अर्थशास्त्राध्ययनं वा / / |) अथवा अर्थशास्त्र का अध्ययन भी इन्द्रिय जय का कारण है। नीतिशास्त्राण्यधीते यस्तस्य दुष्टशनि खान्यपि / वशगानि शान्ति कशाघातहया यथा // . काम के दोष. ' योऽनङ्गेनापि जीयते स कथं पुष्टाङ्गानरातीन जयेत // 10 // कामदेव को महादेव जी ने भस्म कर दिया था इस लिये उसकी 'अनङ्ग' संज्ञा है / यहां शाब्दिक चमत्कार पूर्वक कहा गया है कि जो बिना अङ्गवाले से भी जीता जा सकता है अर्थात् काम के वशीभूत हो जाता है वह पुष्ट अङ्ग वाले शत्रुओं को कैसे जीत सकता है / कामी पुरुष असाध्य रोगी हैकामासक्तस्य नास्ति चिकित्सितम् / / 11 // ) अत्यन्त कामी पुरुष को विनाश से बचाने के लिये कोई चिकित्सा ( उपाय ) नहीं है।