________________ . 12 नीतिवाक्यामृतम् कदर्य का अर्थसंग्रह राजा, दायाद ओर चोरों की निधि है / अर्थात् ऐसा धन चोर, पट्टीदार अथवा राजा के ही काम आता है।) इत्यर्थसमुद्देशः। 3. कामसमुद्देशः काम का स्वरूप(आभिमानिकरसानुविद्धा यतः सर्वेन्द्रियप्रीतिः स कामः // 1 // तन्मयता के साथ जिससे समस्त इन्द्रियों को परितृप्ति और प्रसन्नता हो उसे 'काम' कहते है। विशेषार्थ-काम शब्द का अर्थ इच्छा और अभिलाष है। स्त्री का पुरुष के प्रति, पुरुष का स्त्री के प्रति मिलन का अभिलाष ही धर्म और अर्थ के प्रसङ्ग में काम शब्द का अर्थ है / दूसरे शब्दों में यही अभिलाष अनुराग है। स्त्री पुरुष के अनुराग में एक अनिर्वचनीय स्वाभाविक तल्लीनता होती है जिसका परिचय यहां 'आभिमानिक' शब्द के द्वारा कराया गया है / काम-सेवा का प्रकार-, (धर्मार्थाविरोधेन कामं सेवेत ततः सुखी स्यात् // 2 // धर्म और अर्थ का ध्यान रखते हुए काम का सेवन करने से मनुष्य सुखी रहता है। "त्रिवर्ग" पालन का क्रम समंवा त्रिवर्ग सेवेत // 3 // त्रिवर्ग का सेवन समरूप से करना चाहिए। विशेषार्थ-धर्म अर्थ और काम का सम्मिलित नाम त्रिवर्ग है। जितना समय धर्मचिन्तन में लगायें उतना ही अर्थ चिन्तन में तथा काम-चिन्तन में भी लगावे। अर्थ धर्म और काम में से किसी एक के प्रति अधिक अनुरक्ति का दोषएकोह्यत्यासेवितो धर्मार्थकामानामात्मानमितरौ च पीडयति // 4 // धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में से एक का अधिक सेवन करने से एक की तो वृद्धि होती है किन्तु दो को बाधा पहुँचती है। ___ आत्म-सुख की अवहेलना कर धनोपार्जन करना अनुचित है(परार्थ भारवाहिन इवात्मसुखं निरन्धानस्य धनोपार्जनम् // 5 // अपना सुखभोग त्याग कर धन का उपार्जन करना दूसरे के लिये बोझा होने के समान है।