________________ अर्थसमुद्देशः अर्थनाश का कारण(तीर्थमर्थेनासंभावयन् मधुच्छत्रमिव सर्वात्मना विनश्यति // 4 // . घन के द्वारा जो-तीर्थ का सत्कार नहीं करता उसका मधुमक्खी के छत्ते के समान सर्वनाश हो जाता है) विशेषार्थ-तीर्थ का अर्थ अग्रिम सूत्र में है / (मधुमक्खी के छाते में जब मधु अधिक इकट्ठा हो जाता है तो मक्खियां उसे स्वयं पी जाती हैं यदि उन्हें न पीने दिया जाय तो भी छत्ते का मधु अपने आप नष्ट हो जाता है या मोम बन जाता है। इसी तरह दान-मान द्वारा तीर्थ की पूजा न की गई तो धनी का धन भी नष्ट हो जाता है। तीर्थ का लक्षणCधर्मसमवायिनः कार्यसमवायिनश्च पुरुषास्तीर्थम् // 5 // धार्मिक कृत्यों में सहयोग देने वाले और सब कामों में हाथ बटाने वाले पुरुषों को तीर्थ कहते हैं।) किन का धन नष्ट हो जाता है(तादात्विक-मूलहर-कदर्येषु नासुलभः प्रत्यवायः॥६॥ तादात्विक, मूलहर और कदर्य धनिकों का धन सदा नष्ट हो जाता है।) तादात्विक का लक्षण(यः किमप्यसंचिन्त्योत्पन्नमर्थ व्ययति स तादात्विकः // 7 // उपाजित धन को जो बिना विवेक के खर्च करता है उसे 'तादात्विक' कहते हैं / मूल हर का लक्षण(यः पितृपैतामहमर्थमन्यायेन भक्षयति स मूलहरः // 8 // पिता और पितामह से प्राप्त सम्पत्ति को जो अन्यायपूर्वक अर्थात् जुआ, शराब, वेश्यावृत्ति आदि में उड़ाता है वह 'मूलहर' कहा जाता है।) कदर्य का लक्षण(यो भृत्यात्मपीडाभ्यामर्थ संचिनोति स कदर्यः // 6 // सेवकों को और स्वयम् को भी कष्ट में रख कर जो धन का संग्रह करता है उसे 'कदर्य' कहते हैं।) ___ तादात्विक और मूलहर का भविष्य(तादात्विकमलहरयोरायत्यां नास्ति कल्याणम् / / 10 // तादात्विक और मूलहर का परिणामावस्था में कल्याण नहीं होता।) कदर्य के धनसंग्रह का परिणामकदर्यस्यार्थसंग्रहो राजदायादतस्कराणामन्यतमस्य निधिः // 11 // . . .