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________________ धर्मसमुदेशः ... विशेषार्थ-हाथी पकड़ने वाले व्यक्ति एक शिक्षित हथिनी को जंगल में छोड़ देते हैं बनला हाथी उसके स्पर्श सुखका अनुभव करता हुआ बन्धन में पर जाता है इसी प्रकार पराई स्त्री के स्पर्शादि के क्षणिक सुख के लोभ में पड़ा व्यक्ति भी दुर्गति को प्राप्त होता है / . धर्माचरण से विमुख होने के दोषधर्मातिक्रमाद् धनं परेऽनुभवन्ति स्वयं तु परं पापस्य भाजनं सिंह इव सिन्धुरवधात् // 44 // सिंह हाथी का वध करके छोड़ देता है और उसे सियार आदि खाते हैं इसी प्रकार धर्म का उल्लङ्घन कर मनुष्य चोरी आदि दुष्कर्मों से धन प्राप्त करता है और उस धन का उपभोग उसके पुत्र पौत्रादि करते हैं परन्तु पाप का भागी वह मनुष्य होता है। धर्महीन व्यक्ति का भविष्य(बीजभोजिनः कुटुम्विन इव नास्त्यधार्मिकस्यायत्यां किमपि शुभम् // 45 // बीज के लिये सुरक्षित अन्न को खाकर जिस प्रकार कुटुम्ब-परिवार वाला व्यक्ति परिणाम में दुःख पाता है उसी प्रकार धर्म-हीन व्यक्ति को भी परिणाम में कोई सुख नहीं प्राप्त होता) अर्थ और काम से रहित केवल धर्मोपासना का अनौचित्ययः कामार्थावुपहत्य. धर्ममेवोपास्ते स पक-क्षेत्रं परित्यज्यारण्य कृषति / / 46 // जो पुरुष काम और अर्थ की उपेक्षा कर केवल धर्माचरण में तत्पर होता है वह मानों अपने पके हुए खेत को छोड़कर जंगल को जोतने जाता है। विशेषार्थ–सुखार्थी को काम और अर्थ के साथ धर्म का सेवन करना चाहिए, इस समान आशय का रैभ्य का श्लोक है, . . फामार्थसहितो धर्मो न क्लेशाय प्रजायते / तस्मात्ताभ्यां समेतस्तु कार्य एव सुखाथिभिः // _सच्चा सुबुद्धि कोन है(स खलु सुधीर्योऽमुत्र सुखाविरोधेन सुखमनुभवति // 47 // ) विद्वान् वही है जो परलोक में प्राप्त होने वाले सुख की हानि न हो इस बात का ध्यान रखते हुए इस लोक के सुख का अनुभव करता है / ___अन्यायपूर्वक सुख भोग करने का फल- इदमिह परमाश्चर्य यदन्यायसुखलवादिहामुत्र चानवधिदुःखानुबन्धः // 4 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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