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________________ नीसिवाक्यामृतम् बुद्धिमान व्यक्ति धर्माचार में स्वयं ही प्रवृत्त होता है- ' (कसुधी भेषजभिवात्महितं धर्म परोपरोधादनुतिष्ठति / / 36 / / ) कौन बुद्धिमान् औषध के समान आत्महितकारी धर्म को दूसरे के अनुरोध से करता है ? अर्थात् बुद्धिमान् व्यक्ति स्वयं ही धर्माचरण में प्रवृत्त होते हैं। धर्माचरण की कठिनाइयां— धर्मानुष्ठाने भवत्यप्रार्थितमपि प्रातिलोभ्यं लोकस्य // 37 // धर्म का अनुष्ठान करते समय विघ्न बिना बुलाये ही उपस्थित हो जाते हैं। पापकर्म में मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तिअधर्मकर्मणि को नाम नोपाध्यायः पुरश्चारी वा 1 // 38 // अधर्म के काम में कौन नहीं स्वयम् उपाध्याय और अग्रसर होता। अधर्म करने के लिये किसी उपदेशक और मुखिया की आवश्यकता नहीं होती मनुष्य स्वयम् ही उस और प्रवृत होता है। चतुर व्यक्ति का कर्तव्य(कण्ठगतैरपि प्राणै शुभं कर्म समाचरणीयं कुशलमतिभिः / / 36 ) प्राण कण्ठ को भी आ जाय तब भी बुद्धिमान् पुरुष को निन्दित कर्म नहीं करना चाहिए। धूतों का धनिकों को पाप कर्म में प्रवृत्त करनाव्यसनतर्पणाय धूतैर्दुरीहितवृत्तयः क्रियन्ते श्रीमन्तः // 40 // अपने दुर्व्यसनों की पत्ति के लिये धूर्त लोग धनिकों को पापमार्ग पर प्रवृत्त करते हैं। दुष्ट की संगति त्याज्य हैखलसंगमेन किं नाम न भवत्यनिष्टम् ? // 41 // दुष्ट को संगति से कौन सा अनिष्ट नहीं होता है। दुर्जन निन्दा(अग्निरिव स्वाश्रयमेव दहन्ति दुर्जनाः // 42 // ) जिस प्रकार अग्नि अपने आधार काष्ठ को जलाकर नष्ट कर देती है उसी प्रकार दुष्ट पुरुष भी अपने आश्रयदाता का नाश कर डालते हैं। क्षणिक सुख के लोभ की निन्दावनगज इव तदात्वसुखलुब्धः को नाम न भवत्यास्पदमापदाम् // 43 // जंगली हाथी के समान तात्कालिक सुख के लोभ में पडकर कौन व्यक्ति वापत्तिग्रस्त नहीं होता?
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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