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________________ विवाहसमुद्देशः 187 दिखलाई पड़ें और ये सुडोल न हों, तालु, जीभ, और नीचे के होठ हरड़ के रङ्ग के अर्थात् काले हों, दांत ऊंचे नीचे और पृथक्-पृथक् हों, गालों में गड्ढे पड़ते हों, आंखें पीली-पीली हों, पर की आखिरी अंगुलि सटी हुई हो, माया उभरा हुआ या धंसा हुआ हो, कान ठीक जगह पर न हों, बाल, मोटे, पीले और कड़े हों, बहुत लम्बी, बहुत लम्बी, बहुत छोटी, और शरीर से बहुत हीन अर्थात् बहुत ही पतली दुबली हो, कमर शरीर के अन्य भागों के अनुकूल न हों, कुबड़ी हो, बौनी हो, अथवा टेढ़े-मेढ़े अंगोंवाली हो, वर के जन्म और देहसे समानता न हो अथवा अधिकता हो, इनके अतिरिक्त घर में अकस्मात् आये हुए अथवा स्वयं बुलाये गये व्यक्ति से मिलने जुलने वाली हो, रोगिणी हो, सदा रोती रहनेवालं। हो, पति की हिंसा करनेवाली, सदा सोनेवाली, अल्पायु, बाहर भागी हुई, कुलटा, सदा उदास, दुःखी और लड़ने के लिये तत्पर, नौकर-चाकरों के लिये उद्वेग उत्पन्न करनेवाली, अप्रियदर्शना और अभागिन-कन्या से विवाह न करे / (शिथिले पाणिग्रहणे वरः कन्यया परिभूयते // 15 // पाणिग्रहण में यदि शिथिलता हो तो वर को कन्या से दबकर रहना पड़ता है। (मुखमपश्यतो वरस्य, निमीलितलोचना कन्या भवति प्रचण्डा // 16 // पाणिग्रहण के समय कन्या वर का मुख हीन देखे और आंखें बन्द कर ले तो समझना चाहिए कि कन्या बड़ी प्रचण्ड अर्थात् उग्र स्वभाव की होगी। (सह शयने तूष्णीं भवन् पशुवन्मन्येत / / 17 // स्री के साथ सोते सयय यदि वर चुपचाप रहता है तो कन्या उसे पशुतुल्य समझती है। बिलादाक्रान्ता जन्मविद्वेष्यो भवति // 18 // यदि वर कन्या के साथ प्रारम्भ में ही बलप्रयोग करता हैं तो कन्या जन्मभर उससे द्वेष ही करती है।) (धैर्यचातुर्यायत्तं हि कन्याविसम्भणम् // 16 // कन्या को अपना विश्वासभाजन एवं प्रीतिपात्र बनाने के लिये धर्य और चातुर्य आवश्यक होता है। (समविभवाभिजनयोरसमगोत्रयोश्च विवाहसम्वन्धः // 20 // समान ऐश्वर्य, समानकुल, किन्तु भिन्न-भिन्न गोत्रवालों का विवाह सम्बन्ध होना चाहिए। (महतः पितुरैश्वर्यादल्पमवगणयति // 21 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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