________________ 188 नीतिवाक्यामृतम् - कन्या का पिता यदि अधिक ऐश्वयंशाली हुआ तो कन्या पति को सदा छोटा समझती है। (अल्पस्य कन्यापितुर्दीस्थ्यं महता कष्टेन विज्ञायते // 22 / / यदि कन्या का पिता अल्प विभव वाला और वर विशेष विभव वाला हुआ तो कन्या की मनःस्थिति अथवा मन के दुःखों का ठीक-ठीक अनुभव वर को बड़ी कठिनाई से होता है। (अल्पस्य महता सह संव्यवहारे महान् व्ययोऽल्पश्चायः // 23 / / छोटे कुल का बड़े कुल के साथ सम्बन्ध होने से व्यय अधिक और आय. कम होती है। (वरं वेश्यायाः परिग्रहो नाविशुद्धकन्याया परिग्रहः // 24 // वेश्या को अङ्गीकार करना अच्छा है किन्तु वंश अथवा चरित्र से शुद्ध जो न हो ऐसी कन्या का वरण नहीं अच्छा है। (वरं जन्मनाशः कन्यायाः नाकुलीनेष्ववक्षेपः / / 25 // कन्या का जन्म भले ही नष्ट हो जाय, किन्तु उसे अकुलीन के साथ विवाहित कर देना अच्छा नहीं है। (सम्यग वृत्ता कन्या तावत् सन्देहास्पदं यावन्न पाणिग्रहः / / 26 // ) सदाचार सम्पन्न भी कन्या तब तक सन्देह का स्थान बनी रहती है जब तक कि उसका विवाह नहीं हो जाता। (विकृतप्रत्यूढापि पुनर्विवाहमर्हतीति स्मृतिकाराः // 27 // स्मृतिकारों का मत है कि संयोग या भ्रमवश अन्धे, लूले, लंगड़े आदि विकृत अंगवाले पुरुष के साथ विवाहित कन्या पुनर्विवाह के योग्य होती है / (आनुलोम्येन चतुनिद्विवर्णाः कन्याभाजनाः ब्राह्मण-क्षत्रियविशः / / 28 // ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये अनुलोम क्रम से अर्थात् ब्राह्मण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार कन्याओं से क्षत्रिय इसी प्रकार तीन और वैश्य दो कन्याओं से विवाह कर सकता है।) (देशापेक्षा मातुलसम्बन्धः / / 26 D मामा की लड़की के साथ विवाह करना देश की प्रथा के अधीन है। धर्मसन्ततिरनुपहतारतिगृहवार्तासुविहितत्वमाभिजात्याचारविशुद्धिदेवद्विजातिथिबान्धवसत्कारानवद्यत्वं च दारकर्मणः फलम् / / 30 // ___ धर्मानुसार सन्तानोत्पादन, दोषरहित कायसम्बन्ध, गृह के कार्यों का सुव्यवस्थित रूप से होना, कुलीनता और शुद्ध आचार-व्यवहार का होना,