________________ नीतिवाक्यामृतम् ब्राह्म, देव, आर्ष और प्राजापत्य ये चार धम्यं अर्थात् शास्त्र धर्मोक्त विवाह हैं। (मातुः पितुर्बन्धूनां चाप्रामाण्यात् परस्परानुरागेण मिथः समवायाद् गान्धवः / / 6 // माता-पिता और बन्धु-बान्धवों द्वारा प्रमाणित अर्थात् स्वीकृत हुए बिना . ही परस्पर प्रेम वश पुरुष और स्त्री का सम्मिलन गान्धर्व विवाह है।) (पणबन्धेन कन्याप्रदानादासुरः / / 18 // : पैसे रुपये का मोल करके अर्थात् वर के पिता से कुछ रुपया आदि लेकर कन्या देना 'आसुर' विवाह हैं।) (सुप्तप्रमत्तकन्यादानात् पैशाचः // 11 // सोती हुई अथवा मदिरा आदि के नशे से मत्त कन्या का दान 'पैशाच' विवाह है।) (कन्यायाः प्रसह्यादानाद् राक्षसः // 12 // बलात् कन्या का अपहरण करना 'राक्षस' विवाह है।) (एत चत्वारोऽधा अपि नाधा यद्यस्ति वधू-वरयोरनपवादं परस्परस्य भाव्यत्वम् / / 13 // . यद्यपि गान्धर्व, पैशाच, आसुर और राक्षस ये चारों विवाह धर्म-सम्मत नहीं हैं तथापि यदि वर और वधू के बीच परस्पर निर्दोष अनुराग है तो ये अधर्म संगत नहीं होते।) उन्नतत्वं कनीनिकयोः, लोमशत्वं जङ्घयोः, अमांसलत्वमूर्वोः, अचारुत्वं कटि-नाभि-जठर कुचयुगलेषु, शिरालुत्वम् अशुभसंस्थानत्वं च बाह्वोः, कृष्णत्वं तालुजिह्वाधरं हरीतकीव, विरलविषमभावो दशनेषु, कूपत्वं कपोलयोः, पिङ्गलत्वमक्ष्णोः, लमत्वं पि (चि ) ल्लिकयोः, स्थपुटत्वं ललाटे, दुःसन्निवेशत्वं श्रवणयोः, स्थूलकपिलपरुषभावः केशेषु, अतिदीर्घातिलघुन्यूनाधिकताऽसमवादि-कुब्ज-वामन किराताङ्गत्वं, जन्मदेहाभ्यां समानताधिकत्वं चेति कन्यादोषाः / सहसा तद्गृहे स्वयमाहूत. स्यागतस्य वाभ्यक्ता, व्याधिमती, रुदती, पतिघ्नी, सुप्ता, स्तोकायुष्का, बहिर्गता, कुलटा, अप्रसन्ना, दुःखिता, कलहोद्यता, परिजनोद्वासिन्यप्रियदर्शना, दुर्भगेति नैतां वृणीत कन्याम् // 14 // ___कन्या के दोष निम्नलिखित हैं / इन दोषों से युक्त कन्या विवाह योग्य नहीं होती। खांखों की पुतलियां उभरी हुई हों, जांघों में रोएं अधिक हों, पिण्डलियों में मांस न हो, कमर, नाभि, पेट और दोनों स्तन सुन्दर न हों, बाहों की नसें