________________ युद्धसमुद्देशः 181 / (समस्य समेन सह विग्रहे निश्चितं मरणं जये च सन्देहः आमं हि पात्रमामेनाभिहतमुभयतः क्षयं करोति // 68 - समान बल वालों के परस्पर युद्ध में भरण निश्चित होता है और विजय में सन्देह रहता है / यिट्टी के कच्चे बरतन को दूसरे कच्चे बरतन से टकराने पर दोनों का नाश होता है / (इस दृष्टान्त का आशय है कि समान बल वाले के साथ युद्ध न करे किन्तु सन्धि कर ले।) (ज्यायसा सह विग्रहो हस्तिना पदातियुद्धमिव / / 66 // बलवान के साथ लड़ना पंदल का हाथी से लड़ने के समान विनाशकारी है। (स धर्मविजयोराजा यो विधेयमात्रेणेव सन्तुष्टः प्राणार्थमानेषु न व्यभिचरति // 70 // ___ जो राजा युद्ध के द्वारा किसी को दासमात्र बनाकर ही. सन्तुष्ट हो जाता है. और प्रजा के प्राण, धन और सम्मान का अपहरण नहीं करता वह धर्मविजयी है / (स लोभविजयी राजा यो द्रव्येण कृतप्रीतिः प्राणाभिमानेषु न व्यभिचरति // 71 // जो राजा द्रव्य मात्र प्राप्त कर सन्तुष्ट हो जाता है और प्रजा के प्राण धौर अभिमान का अपहरण नहीं करता वह लोभविजयी है।) सोऽसुरविजयी यः प्राणार्थमानोपघातेन महीमभिलषति / / 72 // जो विजित देश की प्रजा के प्राणोंको, सम्पत्तिको और सम्मान को विनष्ट कर उसकी भूमिका अभिलाष रखता है वह असुरविजयी है। (असुरविजयिनः संश्रयः सूनागारे मृगप्रवेश इव / / 73 / / असुरविजयी राजा के आश्रित होना वधिक के गृह में मृगप्रवेश के समान है।) ( यादृशात्तादृशात् वा यायिनः स्वामी बलवान् यदि साधु घरसंचारः / / 74 // - जिस किसी भी प्रकार के आक्रमणकारी से वह प्रभु बलवान् अर्थात् श्रेष्ठ है जिसका गुप्तचर विभाग ठीक है / / रणेषु भीतमशस्त्रं च हिंसन् ब्रह्महा भवति / / 75 / / संग्राम में, भयभीत और शस्त्रहीन की हिंसा करनेवाला राजा ब्रह्महत्या का भागी होता है। (संग्रामधृतेषु यायिषु सत्कृत्य विसर्गः / / 76 //