________________ पाड्गुण्यसमुद्देशः (सूचीमुखा अनर्था भवन्त्यल्पेनापि सूचीमुखेन महान् दवरकः प्रविशति // 86 // उपद्रव सुई के छेद के सदृश होते हैं / सुई का छेद छोटा ही होता है किन्तु उस में बहुत लम्बा डोरा चला जाता है इसी प्रकार बहुत लाभ की बाशा से किये गये प्रस्थान में लाभ के अनन्तर थोड़ा भी संभावित उपद्रव बढ़ जाता है और तब पराये देश में बड़ी कठिनाई होती है / न पुण्यपुरुषापचयः, क्षयोहिरण्यस्य, धान्यापचयः, व्ययः शरीरस्य( एवम् ) आत्मनो लाभमन्विच्छेद्येन सामिषक्रयाद इव न परैरवरूध्यते / / 87 // ____ अपने किसी प्रभावशाली अथवा प्रतापी अमात्य आदि का नाश न हो, कोश का नाश न हो, धान्य की क्षीणता न हो और अपना शरीर संशय में न पड़ जाय-इन बातों का ध्यान रख कर तब राजा अपने लाभ की इच्छा करे / इसमें उस मांस भक्षी पक्षी का उदाहरण है जो मांस का टुकड़ा मुंह में दबाकर जब उड़ता है तब उसके मांस के लोभ से अन्य पक्षी उसका पीछा करते हैं इसी प्रकार राजा का अनायास लाभ देखकर अन्य प्रतिपक्षी राजा उसका पीछा करेगें। (शक्तस्यापराधिषु या झमा सा तस्यात्मनस्तिरस्कारः / / 8) जो राजा दण्ड देने में समर्थ होकर भी अपराधियों को क्षमा करता है वह मानों अपना ही तिरस्कार करता है / अर्थात् दण्ड न पाकर अपराधी पुनः उसका अपराध करेगा / अतः अपराधी को दण्डित अवश्य करना चाहिए / (अतिक्रम्यवतिषु निग्रहं कत्तः, सर्पादिव दृष्टप्रत्यवायः / सर्वोऽपि विभेति जनः / / 86 . राजाज्ञा का उल्लङ्घन करने वालों को दन्ड देने वाले राजा से लोग उसी प्रकार डरते हैं जिस प्रकार सपं से / अनांयकां बहुनायकां वा सभां न प्रविशेत / / 10 // विना समापति को अथवा जहाँ बहुत से सभापति अथवा मुखिया हों उस सभा में नहीं जाना चाहिए। (गणपुरश्चारिणः सिद्धे कार्ये स्वस्य न किञ्चिद् भवति, असिद्धे पुनध्रुवमपवादः / / 61 किसी गण अथवा संघ का नेता बनकर आगे चलने में काम सिद्ध हो जाने पर अपना कोई विशेष लाभ नहीं होता और काम बिगड़ता है तो निन्दा थवश्य होती है।