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________________ 172 / नीतिवाक्यामृतम् (सा गोष्टी न प्रस्तोतव्या यत्र परेषामपायः / / 62 / / किसी कार्य विशेष के लिये ऐसी गोष्ठी का प्रस्ताव नहीं करना चाहिये जिस के लिये प्रस्तावित अथवा चुने गये लोगों से पक्षपात आदि के कारण लोगों की हानि हो अर्थात् निष्पक्ष व्यक्तियों की कमेटी बनानी चाहिए। (गृहागतमर्थ केनापि कारणेन नावधीरयेद् / यदैवार्थागमस्तदैव सर्वतिथिनक्षत्रग्रहबलम् / / 63 // घर आये हुए द्रव्य का किसी भी कारण वश अनादर न करे अर्थात् उसे लौटावे नहीं / जब ही पैसा आता है तब ही समस्त तिथि नक्षत्र और ग्रहों का बल प्राप्त हो जाता है / अर्थात् (किसी से द्रव्य लेने में सदा शुभ * मुहूर्त है।) गजेन गजबन्धनमिवार्थनार्थोपार्जनम् / / 64) जिस प्रकार शिक्षित हाथी के माध्यम से जंगल में दूसरा हाथी पकड़ा जाता है उसी प्रकार द्रव्य से ही द्रव्य का उपार्जन होता है / न केवलाभ्यां बुद्धिपौरुषाभ्यां महतो जनस्य संभूयोत्थाने सङ्घात. विधातेन दण्डं प्रणयेच्छतभवध्यं सहस्रमदण्ड्यं न प्रणयेत् / / 65 __महान् जन समूह यदि सुसंगठित होकर किसी पक्ष का उत्थापन करता है तो उस जन संघ को अवैध घोषित कर राजा को अपने बुद्धि और पौरुष के गर्व से दण्डित नहीं करना चाहिए (सी और हजार आदमियों का संघ तो अवध्य और अदण्ड्य ही है / अर्थात् सुसंगठित जनमत के विषय में बहुत गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए सहसा अपने सामर्थ्य के मद से कुछ दण्डका विधान नहीं करना चाहिए। (सा राजन्वती भूमिर्यस्यां नासुरवृत्ती राजा / / 66 / / ) राजा से भूमि अर्थात् देश की शोभा तभी होती है जब राजा आसुरी वृत्ति का न हो। (परप्रणेयो राजाऽपरीक्षितार्थमानप्राणहरोऽसुरवृत्तिः / / 67 / / दूसरे की बुद्धि पर चलने वाला तथा बिना सम्यक परीक्षण के ही दूसरे के धन और प्राण का अपहरण करने वाला राजा 'असुरवृत्ति' का राजा है।) (परकोपप्रसादानुवृत्तिः परप्रणेयः / / 68 // दूसरों के कहने से क्रुद्ध और प्रसन्म होनेवाला राजा 'पर प्रणेय' है।) (तत्स्वामिच्छन्दोऽनुवर्तनं श्रेयो यन्न भवत्यायत्यामहिताय / / 68 || स्वामी की उस इच्छा का अनुसरण करना चाहिए जिससे भविष्य में अपना अहित न हो।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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