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________________ पाड्गुण्यसमुद्देशः 166 लिये उसके गुणों का वर्णन करना, सम्बन्धोपाख्यान अर्थात् परस्पर सम्बन्ध दृढ़ होने में सहायक उपाख्यानों को सुनाना, परोपकार का प्रदर्शन, आयति प्रदर्शन, अर्थात् अपनी मंत्री को भविष्य के लिये शुभावह बताना और आत्मोपनिबन्धन / यन्मम द्रव्यं तद्भवता स्वकृत्येषु प्रयुज्यतामित्यात्मोपनिधानम् / / 71 // मेरे पास जो कुछ रुपया पैसा आदि हैं उसे आप अपने कामों में लगाइये इसका नाम आत्मोपनिधान है।) बह्वर्थसंरक्षणायाल्पार्थप्रदानेन परप्रसादनमुपप्रदानम् / / 72 / / ) शत्रु के प्रचुर द्रव्य की सुरक्षा के निमित्त थोड़ी द्रव्यराशि देकर उसे सन्तुष्ट करना उपप्रदान है। योगतीक्ष्णगूढपुरुषोभय वेतनैः परबलस्य परस्परशङ्काजननं निर्भसन वा भेदः // 73 / / विषादि का प्रयोग करके तथा तीक्ष्ण अर्थात् क्रूर प्रकृति के पुरुष, गुप्तचर तथा दोनों ओर से वेतन भोगी व्यक्तियों के द्वारा शत्रु सैन्य में परस्पर शङ्का उत्पन्न करना, तिरस्कार की भावना भरना-भेद है। विधः परिक्लेशोऽर्थहरणं च दण्डः // 74 // शत्रु का वध, उसे पीड़ित करना, उसका धन छीन लेना इनका नाम (शत्रोरागतं साधु परीक्ष्य कल्याण बुद्धिमनुगृह्णीयात् / / 751) शत्रु के पास से आये हुये व्यक्ति को अच्छी तरह परीक्षा करे अनन्तर / यदि वह कल्याण बुद्धि अर्थात् अपना भला चाहने वाला हो तो उस पर अनुग्रह करे-दान मानादि से उसे सन्तुष्ट करे। (किमरण्यजमौषधं न भवति क्षेमाय // 76 / / क्या जंगल में उत्पन्न हुई औषध कल्याणकारक नहीं होती? इस दृष्टान्त से तात्पर्य यह है कि शत्रु के आदमी पर सर्वथा अविश्वास ही न करना चाहिए; वह भला भी हो सकता है।) (गृहप्रविष्टकपोत इव स्वल्पोऽपि शत्रुसम्बन्धी लोकस्तन्त्रोद्वासयति // 7 // ___ गृह में प्रविष्ट कबूतर जिस प्रकार घर को उजाड़ बना देता है उसी प्रकार शत्र का क्षुद्र से क्षुद्र व्यक्ति भी सैन्य में विद्रोह उत्पन्न कर देता है। (मित्रहिरण्यभूमिलाभानामुत्तरोत्तरलाभः श्रेयान् // 78 मित्र, सुवर्ण और भूमि इन लामों में उत्तरोत्तर लाभ अधिक कल्याण
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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