________________ 168 नीतिवाक्यामृतम् देने को तैयार हो तो 'द्वैधीभाव" अर्थात् बलिष्ठ से सन्धि एवं निर्बल से युद्ध की नीति का आश्रय लेना चाहिए / अषवा मन में कुछ और तथा ऊपर से कुछ और की नीति का आश्रय लेकर स्थिति के अनुकूल विजय प्राप्त करनी चाहिए।) (बलद्वयमध्यस्थितः शत्रुरुभयसिंहमध्यस्थितः करीव भवति सुखसाध्यः // 63) दो बलशाली राजाओं के बीच पड़ा हुआ शत्रु दो सिंहों के बीच पड़े हुए हाथी के समान सुखपूर्वक नष्ट किया जा सकता है। (भूभ्यर्थिनं भूफलप्रदानेन सन्दध्यात् / / 64 // ____शत्रु अथवा अन्य व्यक्ति यदि भूमिका प्रार्थी हो तो उसे भूमि न देकर उसकी उपज देना चाहिए। (भूफलदानम् अनित्यं, परेषु भूमिर्गता गतैव / / 65 / / भूमि की उपज देनेवाली बात अनित्य है, किन्तु दूसरे के पास भूमि जाने पर वह सदा के लिये चली जाती है। (अवज्ञयापि भूमावारोपितस्तरुर्भवति बद्धतलः / / 66 // ): भूमि में उपेक्षा के साथ भी लगाया गया वृक्ष जड़ जमाकर दृढ़ हो हो पाता है। . (उपायोपपन्नविक्रमोऽनुरक्तप्रकृतिरल्पदेशोऽपि भूपति भवति सार्वभौमः॥ 67 / / ) ___साम, दान, दण, भेद इन उपायों के साथ पराक्रम करने वाला और धनुरक्त प्रजावाला राजा थोड़े ही प्रदेश का स्वामी. होने पर भी चक्रवर्ती के तुल्य होता है। (न हि कुलागता कस्यापि भूमिः किन्तु वीरभोग्या वसुन्धरा / / 68 // __वंश परम्परा से प्राप्त भूमि किसी की भूमि नहीं होती, किन्तु यह वसुन्धरा वीरों के द्वारा भोगी जाती है / अर्थात् वंश परम्परा से अथवा अन्य प्रकार से प्राप्त पृथ्वी का भोग वही मनुष्य कर सकता है जो वीर और उत्साह सम्पन्न होता हैं अन्यथा उसके कारण अन्य व्यक्ति उस पृथ्वी या राज्य पर अपना अधिकार कर लेते है / (सामोपप्रदानभेददण्डा उपायाः // 66 // साम, उपप्रदान, भेद और दण्ड यह चार उपाय हैं / तत्र पञ्चविधं साम, गुणसंकीर्तनं सम्बन्धोपाख्यानं, परोपकारदर्शनमायतिप्रदर्शनमात्मोपनिबन्धनमिति / / 70 // साम पांच प्रकार का है, गुण संकीर्तन अर्थात् शत्रु को वश में करने के