________________ धर्मसमुद्देशः . औचित्य की परिभाषा(दानप्रियवचनाभ्यामन्यस्य हि सन्तोषोत्पादनमौचित्यम् // 17 // दान और प्रिय वचनों से दूसरे को सन्तुष्ट करने को औचित्य कहते हैं।) लोभी कोन है(स खलु लुब्धो यः सत्सु विनियोगादात्मना सह जन्मान्तरेषु नयत्यर्थम् / / 18 // सच्चा लोभी तो वह है जो सस्पात्र को दान देने के कारण अपनी धनराशि को जन्मान्तर में भी अपने साथ ले जाता है। विशेषार्थ-व्यंग्यान्तर से वह सत्पात्र में अर्थ के उपयोग की प्रशंसा है। भारतीय चिन्तन के अनुसार सत्पात्र में दिया दान अक्षय होकर जन्मान्तर में मिलता है। दान न देकर मीठी बातों से याचक को रोक रखने की निन्दा (अदातुः प्रियालापोऽन्यस्य लाभस्यान्तरायः // 16 // ) याचक को दान न देने वाला व्यक्ति यदि उसे अपने प्रिय वचनों से रोक रखता है तो उस याचक को अन्य स्थान से मिल सकने वाले दान की हानि करता है। ___ दरिद्र असहाय होता हैसदैव दुःस्थितानां को नाम बन्धुः // 26 // सदा दुर्दशा में पड़े हुए का सहायक कोई नहीं होता। याचक के दोष.-- . . (नित्यमर्थयतां को नाम नोद्विजते // 21 / / सदा भागनेवालों से कौन तहीं घबड़ाता। विशेषार्थ-बहुत देर तक दूध पीते रहने वाले बछड़े को गाय भी सोंग मार कर हटाती है, "अपि वत्समतिपिबन्तं विषाणैरधिक्षिपति धेनुः" / तप क्या है(इन्द्रियमनसोनियमानुष्ठानं तपः // 22 // नियमों के अनुष्ठान से इन्द्रियों और मन को वश में करना ही तप है। नियम क्या है(विहिताचरणं निषिद्धपरिवर्जनं च नियमः // 23 // - शास्त्रों में विहित आचार का परिपालन और निषिद्ध आचार का परित्याग ही नियम है।