________________ 160 नीतिवाक्यामृतम् (क्रीतेष्वाहारेष्विव परस्त्रीपु क आस्वादः / / 36 ||) खरीदे हुए भोजन के समान बाजारू स्त्री अर्थात् वेश्या में क्या स्वाद मिल सकता है। (यस्य यावानेव परिग्रहस्तस्य तावानेव सन्तापः / / 40 / / जिसका जितना बड़ा परिवार है उसको उतना हो दुःख है / गजे गर्दभे च राजरजकयोः सम एव चिन्ताभारः // 41 // राजा और धोबी को हाथी और गदहे की चिन्ता समान रूप से होती है। (मूर्खस्याग्रहो नापायमनवाप्य निवर्तते // 42 // मूर्ख पुरुष का आग्रह (मिथ्या हठ ) बिना उसके नाश के नहीं दूर होता। (कार्पासाग्नेरिव मूर्खस्य शान्तावुपेक्षणमौषधम् // 13 // कपास में लगी आग जिस प्रकार शान्त नहीं की जा सकतो उसी प्रकार मूर्ख का दुराग्रह नहीं दूर किया जा सकता। अतः उसकी उपेक्षा करना ही. उसकी औषध है।) मुर्खस्याभ्युपपत्तिकरणमुद्दीपनपिण्डः // 44 // ' मूखं को समझाना उसे और उकसाना है। कोपाग्निप्रज्वलितेषु मूर्खेषु तत्क्षणप्रशमनं घृताहुतिनिक्षेप इव // 45 // क्रोध की आग में जलते हुए मूर्ख को तत्काल शान्त करने की चेष्टा आग में घी की आहुति देने के समान है।) (अनस्तिकोऽनड्वानिव ध्रियमाणो मूर्खः परमाकर्षति // 46 // जिस तरह बिना नकेल के बैल को पकड़ने में वह पकड़ने वाले को ही घसीट ले जाता है उसी प्रकार कुपित मूर्ख को समझाना भी आपत्ति में पड़ना है / " स्वयमगुणं वस्तु न खलु पक्षपाताद् गुणवद्भवति न गोपालस्नेहादुक्षा क्षरति क्षीरम् / 47 // निर्गुण वस्तु किसी के पक्षपात से गुणवान् नहीं बन जाती / ग्वाले के स्नेह से बैल नहीं दूध देने लगता। [इति विवादसमुद्देशः]