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________________ विवादसमुद्देशः 156 (निधिराकस्मिको वाऽर्थलाभः प्राणैः सह सञ्चितमप्यर्थमपहारयति // 26 // पूर्वजों से संचित अथवा प्राप्त निधि अथवा अकस्मात् मिला हुआ धन प्राणों के साथ सञ्चित अर्थ को भी नष्ट कर देता है / ब्रिाह्मणानां हिरण्ययज्ञोपवीतस्पर्शनं च शपथः // 30 // ) ब्राह्मण की शपथ सुवर्ण अथवा यज्ञोपवीत के स्पर्श से होती है। (शत्ररत्नभूमिवाहनपल्याणानां तु क्षत्रियाणाम् // 31 // शस्त्र, रत्न मोती, हीरा आदि, पृथ्वी, सवारी घोड़ा, हाथी आदि और सवारी की जीन का स्पणं कराकर क्षत्रियों से शपथ कराई जाती है। (श्रवणपोतस्पर्शनात् काकिणीहिरण्ययोर्वा वैश्यानाम् || 32 / / कान, छोटा बच्चा, तीस कौड़ियां अथवा सुवर्ण के स्पर्श से वैश्यों की शपथ होती है।) (शुद्राणां क्षीरबीजयोल्मीकस्य वा / / 33 // शूद्रों की शपथ, क्रिया, दूध, अन्न और बाबी के स्पर्श से होती है। कारूणां यो येन कर्मणा जीवति तस्य तत्कर्मोपकरणानाम् // 34 // जो जिस शिल्प से जीवन निर्वाह करता हो उसके साधनभूत औजारों को स्पर्श करके शिल्पी की शपथक्रिया होती है।) अतिनामन्येषां चेष्टदेवतापादस्पर्शनात प्रदक्षिणा, दिव्यकोशात्तन्दुलतुलारोहणविशुद्धिः // 35 // व्रती, तपस्वी तथा अन्य पुरुषों की शपथक्रिया उनके इष्ट देवता के पादस्पर्श से, उनकी प्रदक्षिणा से, देव-निधि के स्पर्श से चाबलों के स्पर्श से शोर तुला पर आरोहण-पर रखने से होती है। व्याधानां तु धनुर्लङ्घनम् // 36 // ) बहेलियों की शपथ धनुष के लांघने से होती है / (अन्त्यवर्णावसायिनामाईचर्मारोहणम् // 37 शूद्र, चाण्डाल आदि की शपथ क्रिया गीले चमड़े पर पर रख कर खड़े होने से होती है। (वेश्या महिला, भृत्यो भण्डः, क्रीणिनियोगो, नियोगिमित्रं चत्वार्यशाश्वतानि || 38 // . वेश्या का किसी की पत्नी बनना, धूतं सेवक का होना, चुङ्गी, टैक्स आदि की आय और अधिकारी की मैत्री ये चार अस्थिर वस्तुएं हैं।)
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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