________________ षाड्गुण्यसमुहेशः 29. षाड्गुण्यसमुद्देशः (शमव्यायामौ योगक्षेमयोर्योनिः // 1 // शम और व्यायाम योग क्षेम के कारण हैं। (कर्मफलोपभोगानां क्षेमसाधनः शमः, कर्मणां योगाराधनो व्यायामः // 2 // अपने कर्मों के अनुसार प्राप्त फल को भोगने में सहायक कल्याणकारी साधनों का नाम शम है, और नवीन कर्म करने के उद्योग का नाम व्यायाम है। / दैवं धर्माधमौं // 3) . अपना ही पूर्व जन्म का किया हुआ धर्म अथवा अधर्म, सुकृत अथवा दुष्कृत 'दैव' है। (मानुषं नयानयौ // 4 // अपना ही नीतिपूर्ण अथवा अनीतिपूर्ण व्यवहार मानुष कर्म है। (देवं मानुषं च कर्म लोकं यापयति // 5) देव और मानुष दोनों कर्मों के योग से मनुष्य को दैनिक जीवन निर्वाह होता है। (तश्चिन्त्यमंचिन्त्यं वा देवम // 6 // मनुष्य चाहे तो देव कर्म की चिन्ता करे चाहे न करे क्योंकि वह तो होकर ही रहेगा / अत: उसकी उपेक्षा करनी चाहिए। अचिन्तितोपस्थितोऽर्थसम्बन्धो दैवायत्तः // 7 // बिना सोच विचार के प्राप्त विषयों से सम्बन्ध होना देवाधीन है।) बुद्धिपूर्वं हिताहित प्राप्तिपरिहारसम्बन्धो मानुषायत्तः // 8 // ज्ञानपूर्वक हितकर कार्य करना और अहितकर से बचना मनुष्य के अधीन है। (सत्यपि दैवेऽनुकूले न निष्कर्मणो भद्रमस्ति // 6 // देव के अनुकूल होने पर भी बिना कर्म किये मनुष्य का कल्याण नहीं हो सकता।), न खलु दैवमीहमानस्य कृतमप्यन्नं मुखे स्वयं प्रविशति // 10 // देव बादी के समक्ष उपस्थित भोजन स्वयं ही उसके मुख में नहीं प्रविष्ट हो जाता। (न हि देवमवलम्बमानस्य धनुः स्वयमेव शरान् सन्धत्ते // 11 // दैववादी का धनुष अपने आप चाणों को नहीं चढ़ा लेता) 11 नी०