________________ .. 154 नीतिवाक्यामृतम् (त्रीणि पातकानि सद्यः फलन्ति, स्वामिद्रोहः, स्त्रीवधो बालवधश्चेति // 63 // अपने स्वामी से द्रोह, स्त्री और बालक का वध ये तीन पाप तत्काल अनिष्ट फलदायक होते हैं। अप्लवस्य समुद्रावगाहनमिवाबलस्य बलवता सह विग्रहाय टिरिटि. ल्लितम् / / 64 // विना नाव के समुद्र में प्रवेश के समान निबंल का बलबान के साथ वैर विनाशकारी होता है। बलवन्तमाश्रित्य विकृति-भजनं सद्यो मरणकारणम् / / 65 / / . बलवान् के आश्रय में रहकर उससे बिगाड़ करना तत्काल मरण का कारण होता है। (प्रवासः चक्रवर्तिनमपि सन्तापयति किं पुनर्नान्यम् / / 66 / / प्रवास चक्रवत्तियों को भी दुःख देता है तो स्वल्प साधन सम्पन्न दूसरों को क्यों न दुःखकर होगा / अर्थात् परदेश में सबको क्लेश होता है / (बहुपाथेयं, मनोऽनुकूलः परिजनः, सुविहितश्चोपस्करः प्रवासे दुःखो. त्तरणतरण्डको वर्गः।। 67 // पाथेय ( रास्ते का कलेवा ) प्रचुर मात्रा में हो मन के अनुकूल सेवक हों, प्रवास की सब सामग्री सुव्यवस्थित रूप से हो इतनी वस्तुएं प्रवास रूप समुद्र में दुःखों से उद्धार पाने के लिए जहाज के समान हैं / [ इति व्यवहार-समुद्दशः) 28. विवाद-समुद्देशः (गुणदोषयोस्तुलादण्डसमो राजा, स्वगुणदोषाभ्यां जन्तुषु गौरवलाघवे // 1 // _ विवाद में गुण और दोषों का निर्णय करने के लिये राजा तराजू की डांड़ी के समान निर्णायक है और प्रजा की गुरुता ओर लधुता-निर्दोष अथवा सदीष सिद्ध होना उसके अपने गुण दोषों पर निर्भर करता है। (राजा त्वपराधालिङ्गितानां समवर्ती तत्फलमनुभावयति // 2 // राजा पुत्र और सामान्य प्रजा में समदृष्टि होकर अपराधियों को उनके अपराधों के अनुकूल फल-दण्ड-का भोग कराता है--विधान बनाता है।) (आदित्यवद्यथावस्थितार्थप्रकाशनप्रतिभाः सभ्याः // 3 // )