________________ सदाचारसमुद्देशः 147 (व्रतं, विद्या, सत्यमानृशंस्यमलौल्यता च ब्राह्मण्वं न पुनर्जातिमात्रम् // 17 // शुभ संकल्प, सद्विद्या का अभ्यास, सत्यपालन, अक्रूरता और गाम्भीर्य गुणों से मनुष्य ब्राह्मण होता है केवल ब्राह्मण जाति में जन्म लेने से नहीं / (निःस्पृहाणां का नाम परापेक्षा / / 58 110 जो व्यक्ति निःस्पृह हैं --जिनको किसी बात का अभिलाष नहीं हैं उनको दूसरे व्यक्ति की सहायता आदि की क्या आवश्यकता है / ____ कं पुरुषमाशा न क्लेशयति // 6 // आशा किसे नहीं दुख देती। स संयमी गृहाश्रमी वा यस्याविद्यातृष्णाभ्यामनुपहतं चेतः // 60 // ) जिपके हृदय में अज्ञान और तृष्णा नहीं है वही व्यक्ति वस्तुतः संयमी और गृहस्थ है। ‘शीलमलंकारः पुरुषाणां न देहखेदावहो बहिः // 61 // ) पुरुषों के लिये 'शोल' ऐसा आभूषण है जो बाहर से देह को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देता अथवा भार नहीं लगता। अप्रियकत्तुर्न प्रियकरणात् परमम् आचरणम् / / 63 // ) अप्रिय आचरण करने वाले व्यक्ति के प्रति प्रिय व्यवहार करना सर्वश्रेष्ठ पाचरण है। अप्रयच्छन्नथिने न परुषं ब्रूयात् // 64 // जिसे कुछ देना न चाहे ऐसे याचक के प्रति कम से कम कठोर वचन तो न बोले / स स्वामी मरुभूमियत्रार्थिनो न भवन्तोष्टकामाश्च / / 65 // वह स्वामी मरुभूमि के समान है जिससे याचकों की अभीष्ट याचा न पूर्ण हो। (प्रजापालनं हि राज्ञो यज्ञो न पुनर्भूतानामालम्भः // 66 // | राजा का यज्ञ प्रजापालन है न कि जीवों की बलि देना। प्रभूतमपि नानपराधसत्वव्यावृत्तये नृपाणां बलं धनुर्वा किन्तु शरणागतरक्षणाय / / 67 / / राजा को प्रचुरशक्ति सैन्य बल आदि अथवा दृढ़ धनुष निरपराध व्यक्तियों को नष्ट करने के लिये नहीं किन्तु शरणागतों की रक्षा के लिये होता है। [इति सदाचारसमुद्देशः]