________________ धर्मसमुद्देशः जरायुज-इन पर जो दयाभाव न रखकर द्रोह पथवा हिंसा का भाव रखता है उसके स्नान-दान-जप आदि समस्त शुभाचरण व्यर्थ होते हैं। * अहिंसक होने का फल..परत्राजिघांसुमनसां व्रतरिक्तमपि चित्तं स्वर्गाय जायते // 7 // (दूसरों पर अहिंसा का भाव रखनेवाले व्यक्ति का व्रत-हीन भी जीवन स्वर्गदायक होता है। असत् त्याग का लक्षणस खलु त्यागो देशत्यागाय यस्मिन् कृते भवत्यात्मनो दौः स्थित्यम् / / 8 // __ जिस त्याग-कार्य से अपनी दुर्दशा हो जाय वह त्याग का कार्य देश-त्याग करा देता है। विशेषार्थ-इस सूत्र का स्पष्टीकरण शुक्रनीति के निम्न-श्लोक में देखिए, आगतेरधिकं त्यागं यः कुर्यात् तत्सुतादयः। दुःस्थिताः स्युः ऋणग्रस्ताः सोऽपि देशान्तरं व्रजेत् // , अविवेकी पाचक की निन्दास खल्वर्थी परिपन्थी यः परस्य दौःस्थित्यं जानन्नप्यभिलषत्यर्थम् // 3 // वह याचक निश्चय ही शत्रु है जो दूसरे की दरिद्रावस्था को जानते हुए भी उससे धन की याच्या करता है। व्रत-ग्रहण से पूर्व विचार की आवश्यकतातद् व्रतमाचरितव्यं यत्र न संशयतुलामारोहतः शरीरमनसी // 10 // उस व्रत-नियम आदि का पालन करना चाहिए जिससे शरीर और मन को क्लेश न हो। विशेषार्थ-यही आशय 'चारायण' के निम्न श्लोक में भी अभिव्यक्त हुआ है। अशक्त्या यः शरीरस्य व्रतं नियममेव वा। 18 करोत्यातॊ भवेत् पश्चात् पश्चात्तापात् फलच्युतिः / / वास्तविक त्याग का लक्षण/ऐहिकामुत्रिकफलार्थमर्थव्ययस्त्यागः // 11 // ... जिस अर्थ-व्यय अथवा त्याग से इहलोक, परलोक दोनों के ही फल का लाभ हो वही वास्तविक त्याप है।