________________ नीतिवाक्यामृतम् नमोऽस्तु राज्यवृक्षाय षाडगुण्याय प्रशाखिने / सामादिचारुपुष्पाय त्रिवर्गफलदायिने // नीति-ग्रन्थ के प्रारम्भ में राज्य की वन्दना वड़ी उपयुक्त और सुन्दर कल्पना है। धर्म का लक्षण.. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः / / 2 // जिससे मानव का अभ्युदय और कल्याण हो वह धर्म है / विशेषार्थ-महर्षि कणाद के मत से अभ्युदय का अर्थ तत्त्वज्ञान और निःश्रेयस का दुःखों की अत्यन्त निवृत्ति है। इस प्रकार तत्त्वज्ञान के द्वारा दुःख की अत्यन्त निवृत्ति धर्म है, महर्षि गौतम के अनुसार अभ्युदय अर्थात् स्वर्ग और निःश्रेयस् अर्थात् मोक्ष जिससे प्राप्त हो बह धर्म है। मीमांसकों के चोदनालक्षणोऽर्थोधर्मः' इस सूत्र के अनुसार वेदों के द्वारा प्रतिपादित कर्म ही धर्म है / किन्तु वेदों के द्वारा उपदिष्ट क्या सभी कर्म अविचारणीय और आवश्यक रूप से कर्तव्य हैं ऐसा कहकर इस मत का खण्डन भी किया जाता है। अधर्म का लक्षण अधर्मः पुनरेतद् विपरीत फलः // 3 // - जिस कार्य का फल अभ्युदय और निःश्रेयस् से विपरीत हो वह अधर्म है। . धर्मप्राप्ति के उपाय- . : आत्मवत् परत्र कुशलचिन्तनं शक्तितस्त्यागतपसी च धर्माधिगमो. पायाः॥४॥ अपने ही समान दूसरे के कुशल और कल्याण का चिन्तन तथा शक्ति के अनुसार त्याग, तपस्या करना धर्म की प्राप्ति के साधन हैं। - श्रेष्ठ आचरण• सर्वसत्वेषु हि समता सर्वाचरणानां परमाचरणम् / / 5 / / / जीव मात्र पर समता अर्थात् निर्वरता का भाव समस्त शुभ आचरणों में श्रेष्ठ आचरण है। ___ जीवद्रोहियों की दशा का वर्णन•न खल भूतगृहां कापि क्रिया प्रसूते श्रेयांसि // 6 // जीवों से द्रोह करनेवाले व्यक्ति की कोई भी क्रिया कल्याण-कारिणी नहीं होती। विशेषार्थ-जीव चार प्रकार के है-स्वेदज, * अण्डज, उद्भिज और