________________ दिवसानुष्ठानसमुद्देशः 137 मैं सुखपूर्वक कार्य कर सकू इस दृष्टि से अपने विभिन्न कार्यों के निमित्त रात और दिन का निश्चित समय विभाग बना ले। (कोलानियमेन कार्यानुष्ठानं हि मरणसमम् // 66 // ) समय का कोई नियम न रखकर कार्य करना मरण तुल्य होता हैं। (आत्यन्तिके कार्ये नास्त्यवसरः / / 70) अत्यन्त कल्याणकारी अर्थात् धार्मिक कार्यों के लिये कोई नियत समय नहीं है / (अवश्यं कर्तव्ये कालं न यापयेत् / / 71 // ) जो कार्य निश्चित रूप से करना ही हो उसमें समय का अतिक्रमण न होने दे। (आत्मरक्षायां कदापि न प्रमायेत / / 72 // ) आत्मरक्षा के कार्यों में कभी भी असावधानी न करें। (सवत्सां धेनुं प्रदक्षिणीकृत्य धर्मोपासनं यायात् / / 73 // ) धर्मोपासना के निमित्त प्रस्थान करने से पूर्व बछड़े सहित गौ की प्रद. क्षिणा कर ले। अनधिकृतोऽनभिमतश्च न राजसभां प्रविशेत् // 74 |) अनधिकृत रूप से तथा बिना आज्ञा प्राप्त किये हुए राजसभा में प्रवेश न करे। (आराध्यमुत्थायाभिवादयेत् // 75 ||) आराध्य पुरुष की वन्दना खड़ा होकर करे बैठे बैठे नहीं। (देवगुरुधर्मकार्याणि स्वयं पश्येत् / / 76 // ) देवता, गुरु और धर्म-सम्बन्धी कार्यों को स्वयं देखे। (कुहकाभिचारकर्मकारिभिः सह न संगच्छेत् / / 77 |) छल-कपट और धोखा धड़ो का काम करने वालों एवम् मारण-मोहन आदि का कार्य करने वालों की संगति न करे। (प्राण्युपघातेन कामक्रीडां न प्रवर्त्तयेत् // 78 ||) प्राणियों की हिंसा करके काम क्रीड़ा में न प्रवृत्त हो। (जनन्यादिपरखिया सह रहसि न तिष्ठेत् / / 76 ||) सम्बन्ध में माता भी लगने वाली पराई स्त्री के साथ एकान्त में न बैठे। (नातिक्रद्धोऽपि मान्यमतिक्रामेदवमन्येत वा ||80) अत्यन्त क्रोध की दशा में भी पूज्य पुरुषों की आशा का उल्लङ्घन और अपमान न करे।