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________________ 136 नीतिवाक्यामृतम् . रसायनों का सेवन करने से मनुष्य का बुढ़ापा और रोग दूर होकर सुन्दर स्वास्थ्य बना रहता है इसी तरह स्वतन्त्र रहने पर भी मनुष्य स्वस्थ रहता है। यथाकामं समीहमानाः किल काननेषु करिणो न भवन्त्यास्पदं व्याधीनाम् / / 56 // जङ्गलों में स्वेच्छापूर्वक विहार करनेवाले हाथी रोग नहीं होते। (सततं सेव्यमाने द्वे एव वस्तुनी सुखाय, सरसः स्वैरालापस्ताम्बूलभक्षणश्च // 60 // निरन्तर सेवित दो ही वस्तुएं सुखोल्पादक होती हैं स्वच्छन्दभाव से सरस संलाप और ताम्बूल का भक्षण / (चिरायोर्ध्वजानुर्जडयति रसवाहिनीः स्नसाः // 61 // ) चिरकाल पर्यन्त घुटनों को उठाकर बैठने से रसवाहिनी नसें जकड़ जाती हैं। सततमुपविष्टो जठरमाध्मापयति, प्रतिपद्यते च तुन्दिलतां वाचि मनसि शरीरे च / / 62 निरन्तर बैठे रहने से जठराग्नि मन्द हो जाती है ,और वाणी, मन तथा . शरीर स्थूल हो जाते हैं। (अतिमात्रं खेदः पुरुषमकालेऽपि जरया योजयति // 63 / / ) अत्यन्त शोक से बिना समय के ही पुरुष को वृद्धावस्था आ जाती है / (नादेवं देहप्रासादं कुर्यात् / / 64). मनुष्य अपने देहरूपी प्रासाद को देवता से शून्य न रक्खे / अर्थात् मन से ईश्वरभक्ति करे। (देवगुरुधर्मरहिते पुंसि नास्ति प्रत्ययः / / 65 / ) जिस पुरुष में देवता की भक्ति, गुरु के प्रति श्रद्धा और धर्म के भाव नहीं वर्तमान हैं वह विश्वासयोग्य नहीं है। (क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेषो देवः // 66 // दुःख, कर्मभोग और ईया द्वेष से शून्य पुरुष विशेष देव हैं / (तस्यैवैतानि खलु विशेषनामानि अर्हनजोऽनन्तः शम्भुबुद्धस्तभो. ऽन्तक इति // 6 // देवसंज्ञक उसी पुरुष विशेष के अहंन् , अज. अनन्त, शम्भु, बुद्ध और तमोऽन्तक ( अज्ञान रूप अन्धकार को दूर करने वाला ) यह सब नाम हैं / :(आत्मसुखानुरोधेन कार्याय नक्तमहश्च विभजेत् // 68 / /
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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