________________ __ नीतिवाक्यामृतम (इन्द्रियात्ममनोमरुतां सूक्ष्मावस्था स्वापः // 20 // ... इन्द्रियों, आत्मा, मन और प्राण वायु का सूक्ष्म अवस्था को प्राप्त हो जाना अर्थात् मन्दशक्ति हो जाना शयन है / (यथासात्म्यं स्वापाद् भुक्तान्नपाको भवति प्रसीदन्ति चेन्द्रियाणि // 21 // ) प्रकृति के अनुकूल पूर्ण निद्रा होने से खाया हुआ अन्न पच जाता है और समस्त इन्द्रियां प्रसन्न हो जाती हैं। अघटितमपिहितं च भाजनं न साधयत्यन्नानि / / 22 / ) (टूटे और बिना ढके हुए पात्र में अन्न नहीं पकता। इसका आशय यह है कि शरीर यदि श्रम से चूर-चूर हो रहा हो और निद्रा से उसकी सुरक्षा न को जाय तो अन्न का परिपाक नहीं होगा। ( प्रथमं नित्यस्नानं, द्वितीयकमुत्सादनं, तृतीयकमायुष्यं चतुर्थकं प्रत्यायुष्यमित्यहीनं सेवेत / / 23 / / प्रथम नित्यस्नान, द्वितीय सुगन्धित तेल का अथवा उबटन का शरीर में मदन, तृतीय आयुवर्धक सात्विक और पौष्टिक पदार्थों का सेवन, चतुर्थ मल. मूत्रादि का समय से विसर्जन आदि में नागा न करे / 'धर्मार्थकामशुद्धिदुर्जनस्पर्शाः स्नानस्य कारणानि // 24 // धार्मिक कार्यों का अनुष्ठान, उत्साहपूर्वक अर्थोपार्जन, प्रसन्मतापूर्वक कामचेष्टाओं में प्रवृत्ति, शरीरशुद्धि ओर दुर्जनों के स्पर्णमात्र से उत्पन्न दोषों को दूर करना इन कारणो से स्नान किया जाता है। . (श्रमस्वेदालस्यविगमः स्नानस्य फलम् // 25 // ) थकावट, पसोना ओर आलस्य का दूर हो जाना स्नान का फल है / जलचरस्येव तत्स्नानं यत्र न सन्ति देवगुरुधर्मोपासनानि // 26 // स्नान के अनन्तर यदि देवता, गुरु और स्वधर्म सम्बन्धी कोई उपासना न की जाय तो वह स्नान जल में रहनेवाले जीव मत्स्य मगर आदि के स्नान के समान व्यर्थ है। (प्रादुर्भवत् क्षुत्पिपासोऽभ्यङ्गस्नानं कुर्यात् // 27 // जब भूख और प्यास प्रतीत हो तब मनुष्य को समस्त अङ्ग में तैल मर्दन करने के अनन्तर स्नान करना चाहिए / आचार्य प्रवर का आशय है कि जब भूख और प्यास मालूम पड़ने लगे तब स्नान का समय जानकर तैल मदन करने के अनन्तर स्नान करे।) (आतपसंतप्तस्य जलावगाहो दृल्मान्धं शिरोव्यथां च जनयति / / 28 / / )