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________________ दिवसानुष्ठानसमुद्देशः 131 शुक्र मल-मूत्र मरुवेगसंरोधोऽश्मरीभगन्दरगुल्मार्शसां हेतुः // 11 // शुक्र, मल, मूत्र और अपानकायु के वेग को रोकने से पथरी, भगन्दर, गुल्म और बवासीर रोग होते है।) गिन्धलेपावसानं शौचम् आचरेत् / / 12 / ) शरीर या उसके अङ्ग में लगा हुआ किसी वस्तु का गन्ध और लेप जब तक छट न जाय तब तक शुद्धि अर्थात् पानी से धोने आदि की क्रिया करनी चाहिए / (बहिरागतो नानाचम्य गृहं प्रविशेत् // 13 / ) बाहर से घूम-धामकर आने पर बिना कुल्ला किये घर में न प्रविष्ट हो / (गोसर्ग व्यायामो रसायनमन्यत्र क्षीणाजीर्णवृद्धवातकिरूक्षभोजिभ्यः // 14 // ~ जिनका शरीर रोगादि के कारण क्षीण न हुआ हो, जिनको अजीर्ण का रोग न हो, जो वृद्ध न हों. जिनको गठिया आदि वायु का रोग न हो और जिनको रूखा-सूखा भोजन नहीं किन्तु स्निग्ध और पौष्टिक भोजन मिलता हो उन लोगों के द्वारा प्रातःकाल जब कि गायें जंगल में चरने के लिए खोली जाती हैं अर्थात् गोधूलि में व्यायाम करना रसायन सेवन के समान महान् गुणकारी होता है। शरीरायासजननी क्रिया व्यायामः // 15 // जिससे शरीर को परिश्रम हो उस क्रिया का नाम व्यायाम है / (शस्त्रवाहनाभ्यासेन व्यायामं सफलयेत् // 16 // गदा, लाठी तलवार आदि चलाकर तथा घोड़े आदि की सवारी का अभ्यास कर व्यायाम को सफल बनावे / अर्थात् व्यायाम दण्ड-बैठक आदि के साथ इनको भी करता रहे। (आदेहस्वेदं व्यायामकालमुशन्त्याचार्याः // 17 // ) / आचार्यों ने व्यायाम करने की अवधि पसीना निकलने लगने तक कही है। (बलातिक्रमेण व्यायामः का नाम नापदं जनयति / / 58 / / ) शक्ति से अधिक व्यायाम करने से कौन सी ऐसी आपत्ति है जो नहीं उत्पन्न होती अर्थात् शक्ति से अधिक व्यायाम अनेक व्याधियों का घर होता है। अव्यायामशीलेषु कुतोऽग्निदीपनमुत्साहो देहदाय॑श्च // 16 // जिसका व्यायाम करने का स्वभाव नहीं है उसकी जठराग्नि किस प्रकार दीप्त रह सकती है और उत्साह तथा देह की पुष्टता भी उसे कैसे प्राप्त हो सकती है?
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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