________________ राजरक्षासमुद्देशः . 127 (गर्भशर्मजन्मकर्मापत्येषु देहलाभात्मलाभयोः कारणं परभम् // 68) गर्भकाल सुखमय व्यतीत हुआ हो अर्थात् गर्भ की दशा में माता के दिन सुख से बीते हों, उसे कोई रोग आदि न हुषा हो और बालक का जन्म हो जाने पर उसका जन्म संस्कार आदि शास्त्रीय ढंग से हुआ हो ये दो बातें बालक के शारीरिक बल और आत्मवल की प्राप्ति के उत्कृष्ट कारण हैं। यदि गर्भसम्बन्धी कोई उपद्रव न हुआ हो और उत्पन्न बालक का समुचित संस्कार एवं शिक्षा की सुव्यवस्था हो तो अवश्य ही उत्पन्न बालक शरीर से हृष्ट-पुष्ट और मन से 'महामना' होगा। राज्याधिकार प्राप्ति के योग्य व्यक्ति(स्वजाति-योग्यसंस्कारहीनानां राज्ये प्रव्रज्यायां च नास्त्यः धिकारः / / 66 / / अपनी जाति के योग्य जिनका संस्कार न हमा हो ऐसे व्यक्ति राज्य और संन्यास-दीक्षा पाने के अधिकारी नहीं है। (असति योग्येऽन्यस्मिन्नङ्गविहीनोऽपि पितृपदमहत्यापुत्रोत्पत्तेः॥५०॥) दूसरा कोई योग्य राज्याधिकारी न होने पर अङ्गहीन व्यक्ति भी पिता के पद का अधिकारी तब तक के लिये होता है जब तक कि उसे पुत्र न उत्पन्न हो जाय। .. राजपुत्रों को विनय और शील की शिक्षा देना आवश्यक(साधुसम्पादितो हि राजपुत्राणां विनयोऽन्वयमभ्युदयं न च दूषयति / / 71 // _____ सत्पुरुषों द्वारा विनय और शील की शिक्षा पाये हुए राजकुमारों से वंश और राज्य की वृद्धि दूषित नहीं होती अर्थात् वंश का गौरव और राज्य का वैभव बढ़ता है। (घुणजग्धं काष्ठमिवाविनीतं राजपुत्रं राज्यमभियुक्तमात्रं भब्येत् / / 72 // ) जिस प्रकार लकड़ी के कीड़े घुन से खाई गई. लकड़ी कहीं लगाते ही टूट जाती है उसी प्रकार अविनयपूर्ण राजपुत्र के राज्यभार ग्रहण करते ही राज्य विनष्ट हो जाता है। विनीत राजपुत्रों का फल.(आप्तविद्यापूद्धोपरुद्धाः सुखोपरुखाश्च राजपुत्राः पितरौ नाभिद्रुः प्रन्ति // 73 // ) बाप्त और विद्यापुद्ध पुरुषों द्वारा विनीत बनाये गये तथा सुखपूर्वक ... पालित पोषित राजकुमार अपने पिता माता से मोह नहीं करते।