________________ 126 नीतिवाक्यामृतम (अन्यत्र प्राणबाधाबहुजनविरोधपातकेभ्यः // 12 // स्वामी का आदेश बिना संशय करने को तत्पर अवश्य रहै किन्तु तीन बातों का विचार तो कर ही ले कि उससे, अपना प्राण तो संकट में नहीं पड़ रहा है, जनता का विरोध तो नहीं मिल रहा है तथा कोई पाप तो नहीं बन पड़ रहा है।) बलवान् सजातीयों के प्रति राजा का कत्र्तव्य(बलवत्-पक्षपरिग्रहेषु दायिष्वाप्तपुरुषपुरःसरो विश्वासो वशीकरणं गूढपुरुषनिक्षेपः प्रणिधिर्वा // 63 // ) किसी कारणवश बलवान् बन बैठे हुए दायादों को वश में करने के लिये उनके पास आप्त पुरुषों को भेजकर अपने में विश्वास उत्पन्न कराना चाहिए अथवा अपना गुप्तचर भेजकर उनका रहस्य अवगत करते रहना चाहिए कि वह राज्य विनाश का कोई पड़ यन्त्र तो नहीं कर रहे है।) - दुर्बोधे सुते दायादे वा सम्यग युक्तिमिदुरभिनिबेशमुत्तार-. येत् / / 64 // किसी दुराग्रहपूर्ण कार्य करने के लिये तुले हुए पुत्र और दायाद को युक्ति के साथ समझा-बुझा कर उसका दुराग्रह दूर करना चाहिए / उपकारी सज्जनों के प्रति सद्व्यवहार आवश्यकसाधुषूपचर्यमाणेषु विकृतिभजनं स्वहस्तादंगाराकर्षणमिव // 6 / / ) उपकारक साधु-पुरुषों के प्रति दुर्व्यवहार करना अपने ही हार्यों बाग का अङ्गारा खींचने के समान है। . सन्तति के शुभाशुभ का विचार - (क्षेत्रबीजयोर्वैकृत्यमपत्यानि विकारयति // 66 // ) जिस प्रकार क्षेत्र और पीज यदि बुरे हों तो खेती विनष्ट होती है उसी प्रकार क्षेत्र और बीज तुल्य माता-पिता में विकृति होने से सन्तान में भी विकृति होती है। कुलविशुद्धिरुभयतः प्रीतिर्मनःप्रसादोऽनुपहतकालसमयश्च श्रीसरस्वत्यावाहनमन्त्रयुतपरमान्नोपयोगश्च पुरुषोत्तममवतारयन्ति // 6 // साधारण गृहस्थ के यहाँ महापुरुष किस प्रकार जन्म प्रहण करते हैं इसका उपक्रम करते हुए आचार्य प्रवर कहते हैं। माता-पिता दोनों शुद्धषंश के हों, उनमें परस्पर प्रेम हो, मन में प्रसन्नता हो, गोधूलि आदि निषिद्ध समय न हो, लक्ष्मी और सरस्वती के सूक्तों से अभिमन्त्रित सात्त्विक अन्न का भोजन किया गया हो-इतने कारणों से घर में पुरुषोत्तम अवतार ग्रहण करते हैं।