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________________ 128 नीतिवाक्यामृतम् राजपुत्र का कर्तव्य(मातापितरौ राजपुत्राणां परमं दैवतम् // 74 / ) राजकुमारों के लिये माता और पिता उत्कृष्ट देवता हैं। (यत्प्रसादादात्मलाभो राज्यलाभश्च / / 75 // जिनकी कृपा से उनको अपना शरीर मिलता है और राज्य प्राप्ति होती है। (मातापित्रोर्मनसाप्यपमानेष्वभिमुखा अपि श्रियो विमुखाभवन्ति / / 76 माता और पिता का मन से भी अपमान करने पर आती, हुई भी लक्ष्मी विमुख हो जाती है। (किन्तेन राज्येन यत्र दुरपवादोपहतं जन्म // 77 लोकनिन्दा से दूषित राज्य से क्या लाभ ? कचिदपि कर्मणि पितुराज्ञां नो लङ्घयेत् / / 78 // ) किसी भी कार्य में पिता की आज्ञा का उल्लङ्घम न करे। (किन्नु खलु रामः क्रमेण विक्रमेण वा हीनो यः पितुराज्ञया वनम् आविवेश / / 76 // क्या रामचन्द्र पौरुष और पराक्रम से शून्य थे जो पिता को आज्ञा से वन को चले गये ) (यः खलु पुत्रो मनीषितपरम्परया लभ्यते स कथमपकर्त्तव्यः / / 80|| जो पुत्र देवताओं से प्रार्थना आदि करके प्राप्त किया गया है उसका अपकार कैसे किया जा सकता है / पिता पुत्र प्राप्ति के लिये देवी देवताओं का पूजन करता है, व्रत आदि करता है ऐसे पुत्र पर उसका हार्दिक स्नेह रहता है वह कदापि पुत्र के अपकार की बात नहीं सोच सकता अत: पुत्र को अपने मन में कभी ऐसा विचार भी न लाना चाहिए कि पिताजी हमारा अपकार चाहते हैं। (कर्तव्यमेवाशुभं कर्म यदि हन्यमानस्य विपद्-विधानम् आत्मनो न भवेत् / / 81 // किसी का वध आदि अशुभ कम भी राजा राज्य की कल्याण-दृष्टि से कर सकता है यदि बाद में वही आपत्ति अपने ऊपर भी न आने की संभा. वना हो। ' (ते खलु राजपुत्राः सुखिनो येषां पितरि राज्यभारः // 2 // वे राजपुत्र सुखी है जिनके पिता के ऊपर राज्य भार है / राज्य का भार कोई सुखकर कार्य नहीं है: अनेक चिन्ताओं से मनुष्य घिरा रहता है अतः पिता राज्य संभालें पोर पुत्र मानन्द करे यह अच्छा हैं। .
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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