________________ 122 नीतिवाक्यामृतम् आख्यानों से अवगत होता है कि अपनी स्वच्छन्दता के लिये महादेवी मणिकुण्डला ने अपने पुत्र को राज्य पर अभिषिक्त करने की अभिलाषा से यवनदेश में अङ्गराज का वध कर दिया था।) (विषालक्तकदिग्धेनाधरेण वसन्तमतिः शूरसेनेषु सुरतविलासं, विषो. पलिप्तेन मणिना वृकोदरी दशार्णेषु मदनार्णवं, निशितनेमिना मुकुरेण मदिराक्षी मगधेषु मन्मथविनोदं, कबरीनिगूढेनासिपत्रेण चन्द्ररसा पाण्ड्येषु पुण्डरीकमिति // 36 // जहरीले भालते से रंगे हुए अपने अधरोष्ठ के द्वारा वसन्तमति ने मथुरा में सुरतविलास नाम के राजा को, विदिशा (भेलसा) में वृकोदरी ने विष से रंगी हुई मणि के द्वारा मदनाणंव को, मगध में मदिराक्षी ने तीक्ष्ण धार वाले दपंण से मन्मथ विनोद को और पाण्ड्य देश में (तिनेवली, मद्रास ) चन्द्ररसा ने शिपाश के भीतर छिपाई हुई तलवार अथवा छुरे से पुण्डरीक को मार डाला था। अमृतरसवाप्य इव क्रीडासुखोपकरणं स्त्रियः / / 37 / / ___ अमृत रस की बावली के समान स्त्रियां लक्ष्मी के विलास से सुलभ सुखों की साधन हैं / अत:--- कस्तासां कार्याकार्यविलोकनेऽधिकारः // 38 // वे क्या अच्छा काम करती है क्या बुरा काम करती हैं इसको देखने का क्या प्रयोजन है ? अर्थात् अमृत रस के समान आह्लादित करने वाली स्त्रियों के कत्र्तव्या-कर्तव्य का विवेचन व्यथं है। उनका सदुपयोग करना चाहिये। मी को स्वतन्त्रता के क्षेत्र-- (अपत्यपोषणे, गृहकर्मणि, शरीरसंस्कारे, शयनावसरे स्त्रीणां स्वातन्त्र्यं नान्यत्र / / 36 // ___ सन्तान पालन, गृहस्थी के दैनिक कार्यकलाप, शारीरिक शृंगार और पति के साथ शयन इन चार कार्यों में स्त्रियों को स्वतन्त्रता देनी चाहिए अन्यत्र नहीं। स्त्री के अतिस्वातन्त्र्य से दुष्परिणाम-- (अतिप्रसक्तेः स्त्रीषु स्वातन्त्र्यं करपत्रमिव पत्यु विदार्य हृदयं विश्राम्यति / / 40 // अत्यन्त आसक्त होकर स्त्रियों को पूर्ण स्वतन्त्रता देने का परिणाम यह होता है कि वे बारे के समान-पति के हृदय को विदीर्ण किये बिना विश्राम