________________ राजरक्षासमुहेशः 121 (यथाकामं कामिनीनां संग्रहः परमनर्थवानकल्याणावहः प्रक्रमोऽदौवारिके द्वारि को नाम न प्रविशति / / 26 / ) राजा अपने सौख्य के अनुसार कामिनियों ( वेश्याओं ) को रख सकता है। किन्तु यह काम अनर्थकारी और अमङ्गलकारक है / वेश्या किसी दूसरे से सम्पर्क न रखे अथवा उसके यहां कोई दूसरा न आवे यह कैसे हो सकता है ? जिस द्वार पर उसफा रक्षक कोई द्वारपाल नहीं होता वहां कौन नहीं प्रविष्ट होता? राजा के योग्य वेश्या(मात्राभिजनविशुद्धाः, राज्ञः उदवसत्युपस्थायिन्यः स्त्रियः संभोक्तव्याः // 30 // जिनकी माता के विषय में ज्ञात हो सके और जो राजद्वार पर नत्य आदि के निमित्त आती रहती हों ऐसी ही वेश्याएं राजा के भोग योग्य हैं। - ___ (दर्दुरस्य सर्पगृहप्रवेश इव स्त्रीगृहप्रवेशो राज्ञः // 31 // . राजा का ( परकीया अथवा वेश्या ) स्त्रीगृह में प्रवेश वैसा ही निरापद नहीं है जैसा कि मेढक का सपं के गृह में प्रवेश / (न हि स्त्रीगृहादायातं किञ्चित् स्वयमनुभवनीयम् // 32 // . स्त्री के गृह से आया हुआ कोई भी भोज्य आदि राजा को स्वयम् नहीं खाना चाहिए / अर्थात् उसका दूसरों से परीक्षण करा करके ही कि उसमें विष खादि तो नहीं मिला है राजा को उसका उपयोग करना चाहिए। नापि स्वयमनुभवनीयेषु स्त्रियो नियोक्तव्याः // 33 // स्वयम् अनुभवनीय वस्तुओं अर्थात् भोजन आदि के विषयों में स्त्रियों को नहीं नियुक्त करना चाहिए। स्त्रियों के निन्दनीय कृत्य और तत्सम्बन्धी आख्यान-- (संबननं स्वातन्मयं चाभिलषन्त्यः स्त्रियः किं नाम न कुर्वन्ति // 34 // वशीकरण, मारण मोहन आदि और स्वतन्त्रता की अभिलाषा करती हुई स्त्रियां क्या नहीं कर डालती ? अर्थात् निन्दनीय से भी निन्दनीय कुकृत्य करने में उनको सोंच नहीं होता। (श्रूयते हि किल आत्मनः स्वच्छन्दवृत्तिमिच्छन्ती विषविदूषितगण्डूषेण मणिकुण्डला महादेवी यवनेषु निजतनुजराज्यार्थजघान राजा नमङ्गम् // 34 //