________________ 120 ' नीतिवाक्यामृतम् सकती है / मनुष्य का विवाह न करना श्रेष्ठ है किन्तु विवाहिता की उपेक्षा ठीक नहीं है। ___स्त्री रक्षा की आवश्यकता(अकृतरक्षस्य किं कलत्रेण, अकृषतः किं क्षेत्रेण // 23 // जो खेती नहीं करता उसके लिये जिस प्रकार खेत ध्यर्थ है उसी प्रकार जो स्त्री की रक्षा न कर सके उसके लिये स्त्री ध्यर्थ है। पति से स्त्री की विरक्ति के कारण-- सपत्नीविधानं, पत्युरसमक्षसं च, विमाननमपत्याभावश्च चिर. विरहश्च स्त्रीणां विरक्तिकारणानि // 24 // एक स्त्री होते हुए दूसरा-तीसरा विवाह कर सपत्नी बनाना, पति के मन से मन का न मिलना, पति के द्वारा अनादर, सन्तान का अभाव, और पति का चिर वियोग-इन कारणों से स्त्रियां पति से विरक्त हो जाती हैं / स्त्री के मले बुरे होने में संगति की प्रधानता-- (न स्त्रीणां सहजो गुणो दोषो वास्ति किन्तु नद्यः समुद्रमिव यादृशं पतिमाप्नुवन्ति तादृश्यो भवन्ति स्त्रियः // 24 // ) स्त्रियों में स्वाभाविक गुण-दोष नहीं होता, किन्तु. नदियां जिस प्रकार समुद्र में मिलकर खारे जलवाली हो जाती हैं उसी प्रकार पति के गुण दोर्षों के अनुरूप स्त्रियां भी गुण दोषवती बन जाती हैं। स्त्रियों में स्त्री दूत की आवश्यकता-- (स्त्रीणां दौत्यं स्त्रिय एव कुर्युस्तैरश्चोऽपि पुंयोगः स्त्रियं दूषयति किं पुनमोनुष्यः / / 26 / / ) स्त्रियों के पास सन्देश आदि भेजने के लिये स्त्रियों को ही दूती बनाना चाहिए क्योंकि तिर्यक् योनि के पशु आदि के पुरुष-संयोग से स्त्रियां दूषित हो जाती हैं, फिर मनुष्य संयोग के विषय में तो कहना ही क्या है ? स्त्रीरक्षण का उद्देश्य-- वंशविशुद्धयर्थम् अनर्थपरिहारार्थ स्त्रियो रक्ष्यन्ते न भोगार्थम् / / 27 // - स्त्रियों की रक्षा अर्थात् विवाह आदि करके स्त्री का लाना वंश की शुद्धि और अनों से बचाव के लिये किया जाता है केवल भोग के लिये नहीं। वेश्या के साथ व्यवहार-- (भोजनवत् सर्वसमानाः पण्याङ्गनाः कस्तासु हर्षामर्षयोरवसरः // 28) जिस प्रकार होटल आदि का बाजारू भोजन सबके लिये समान रूप से सुलभ होता है उसी प्रकार वेश्याएं सर्वसाधारण के उपभोग के लिये होती हैं उनमें हर्ष मोर अमर्ष (क्रोध ) कैसा?