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________________ राजरक्षासमुद्देशः 116 कामदेव की भी गोद में बैठी हुई स्त्री पर पुरुष की अभिलाषा करती न मोहो, लज्जा, भयं, स्त्रीणां रक्षणं किन्तु परपुरुषादर्शनं संभोगः सर्वसाधारणता च // 15 // मोह, लज्जा और भय से स्त्री की रक्षा नहीं हो सकती किन्तु उसकी रक्षा के तीन ही उपाय हैं वह पर पुरुष को देख न सके, पति द्वारा उसे संभोग सुख प्राप्त होता रहे, और पति यदि अन्य स्त्रियों से भी सम्पर्क रखता हो तो उन सबमें सर्वथा समान व्यवहार रक्खे।) (दानदर्शनाभ्यां समवृत्तौ हि पुंसि नापराध्यन्ते स्त्रियः // 16 // ) जिस पुरुष को बहुत सी स्त्रियां हो वह यदि उन सबसे समानरूप से मिलता-जुलता और रुपया-पैसा तथा वस्त्रालङ्कार आदि देता रहता है तो कोई भी स्त्री उसमे विरोध नहीं करती। . (परिगृहीतासु स्त्रीषु प्रियाप्रियत्वं न मन्येत // 17 // ) विवाहिता पत्नियों में प्रिय अप्रिय का भेद न रखे / सबको समान भाव से माने / ( कारणवशानिम्बोऽप्यनुभूयत एव / / 18 // कारणवश अर्थात् रोगादि की शान्ति के लिये नीम भी पाई जाती है अतः स्त्रीविरोध के कारण अपने नाश को बचाने हेतु सुन्दरी कुरूपा समस्त प्रकार की विवाहित पत्नियों में एक जैसा व्यवहार करे / ऋतुमती स्त्री के प्रति पुरुष का कत्र्तव्य-- (चतुर्थदिवसस्नाता स्त्री तीर्थ तीर्थापराधो महान् धर्मानुबन्धः // 16 // ऋतुमती स्त्री जब चौथे दिन स्नान करती है तब वह तीयं तुल्य है उस समय पति का उसके पास न जाना तीर्थ में अपराध करने के समान महान् अधर्म का कारण होता है। (ऋतावपि स्त्रियमुपेक्षमाणः पितृणामृणभाजनम् // 20 // ) जो ऋतुकाल में स्त्री समागम नहीं करता थोर उसकी उपेक्षा करता है वह अपने पितरों का ऋणी बना रहता है / (अवरुद्धाः स्त्रियः स्वयं नश्यन्ति स्वामिनं वा नाशयन्ति // 21 // ऋतुकाल में भी उपेक्षित स्त्रियां स्वयं नष्ट हो जाती हैं अथवा स्वामी का नाश कर देती हैं। न स्त्रीणामकर्तव्ये मर्यादास्ति, वरमविवाहो नोढोपेक्षणम् // 22 // स्त्री के कुकृत्य को कोई मर्यादा नहीं है अर्थात् वह बुरे से बुरा कार्य कर
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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