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________________ नीतिवाक्यामृतम् . (देहिनि गतायुषि सकलाङ्गे किं करोति धन्वन्तरिरपि वैद्यः // 6 // ) जब प्राणी की आयु ही निःशेष हो गई हो तब समस्त अंगों के होते हुए भी धन्वन्तरि भी वैध के रूप में क्या कर सकते हैं? राजा की रक्षा के लिये विचारणीय क्रमराज्ञस्तावदासन्नाः स्त्रिय आसन्नतरा दायादा, आसन्नतमाश्च पुत्रा. स्ततो राज्ञः प्रथमं स्त्रीभ्यो रक्षणं ततो दायादेभ्यस्ततः पुत्रेभ्यः // 7 // राजा की समीपत्तिनी स्त्रियां होती हैं, उनसे अधिक समीपवर्ती दायादपट्टीदार और उनसे भी निकटतम पुत्र होते हैं / अतः सर्व प्रथम स्त्रियों से राजा की रक्षा करनी चाहिए उसके अनन्तर पट्टीदारों से और तब पुत्रों से रक्षा करनी चाहिए। (आप्लवङ्गादाचक्रवर्तिनः सर्वोऽपि स्त्रीसुखाय क्लिश्यति // 8 // ) बानर से लेकर चक्रवर्ती राजा तक सभी व्यक्ति स्त्री-सुख की प्राप्ति के लिये ही क्लेश उठाते हैं। (निवृत्तस्त्रीसङ्गस्य धनपरिग्रहो मृतमण्डनमिव / / 6) . वनिताओं के सुख भोग से विरक्त व्यक्ति के लिये धन का संचय मृतक को वस्त्राभूषण आदि से सुसजित करने के समान व्यर्थ है / स्त्रियों की प्रकृति का वर्णन(सर्वाः स्त्रियः क्षीरोदवेला इव विषामृतस्थानम् // 10 // ) सभी स्त्रियां क्षीरसमुद्र के समान विष और अमृत दोनों का स्थान हैं। समुद्रमन्थन करने पर उसी से हलाहल विष और अमृत दोनों ही निकले थे छमी IT ji अमठ के समान सुखदायफ और विष के समान दुःखदायक दोनों ही है। (मकरदंष्टा इव खियः स्वभावादेव वक्रशीलाः // 11 // ) मगर की डाढ़ के समान स्त्रियां स्वभाव से ही कुटिल स्वभाव वाली होती हैं। (स्त्रीणां वशोपायो देवानामपि दुर्लभः // 12 / / ) स्त्रियों को वश में कर लेने का उपाय देवताबों के लिये भी दुर्लभ है। . (कलत्रं रूपवत् , सुभगम् , अनवद्याचारम् , अपत्यवदिति महतः पुण्यस्य फलम् // 13 // ___स्त्री-सुन्दरी, सौभाग्यशालिनी, अनिन्द्य चरित्रवाली और संतानवाली हो यह महान् पुण्य से होता है। (कामदेवोत्सङ्गस्थापि स्त्री पुरुषान्तरम् अभिलषति च // 14 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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