________________ 117 राजरक्षासमुद्देशः प्राप्ति के लोभ से उसे विशाला नगरी में जब कि वह किसी शून्य देवालय में सो रहा था तब रात्रि के समय मार डाला / इसी प्रकार नाडीजङ्घ नाम के किसी उपकारी को गौतम नामक व्यक्ति ने मार डाला था। [इति मित्रसमुद्देशः] . 24. राजरक्षासमुद्देश राजा की सर्वविध रक्षा आवश्यक है(राज्ञि रक्षिते सर्व रक्षितं भवत्यतः स्वेभ्यः परेभ्यश्च नित्यं राजा रक्षितव्यः // 1 // राजा की रक्षा होने पर सब की रक्षा होती है अतः आत्मीयों पट्टीदारों बादि और अनास्मीयों = शत्रु आदि से राजा की रक्षा सर्वदा करनी चाहिए। राजरक्षा के उपाय--- (सम्बन्धानुबद्धं शिक्षितमनुरक्तं कृतकर्माणं च जनम् आसन्नं कुर्वीत // 2 // इसीलिये नीतिवेत्ताओं ने कहा है कि राजा को अपना अङ्गरक्षक और आसन्नचारी ऐसे आदमी को बनाना चाहिए जिसका पिता और पितामह की परम्परा से कोई सम्बन्ध रहा हो, महासम्बन्ध अर्थात् विवाह आदि के सम्बन्ध से वह कोई सम्बन्धी होता हो, शिक्षित हो, और अपने प्रति अनुरक्त एवं श्रद्धालु हो तथा राज-काज कर चुका हो।) (अन्यदेशीयम् , अकृतार्थमानं, स्वदेशीयञ्चापकृत्योपगृहीतम्-आसन्नं न कुर्वीत // 3 // ) ___ जो अन्य देश का हो, धनादि देकर जिसका कभी सम्मान न किया हो अपने देश का भी हो किन्तु कभी स्वयं दण्डित करके पुनः उसे रख लिया हो, इस प्रकार के व्यक्तियों को राजा अपना आसन्न चारी न बनावे / (चित्तविकृते स्त्यविषयः, किन्न भवति माताऽपि राक्षसी // 4 // .. चित्त में विकृति उत्पन्न होने पर-नियत बिगड़ने पर मनुष्य के लिये कोई भी कार्य अकार्य नहीं रह जाता / क्या माता भी राक्षसी होती नहीं देखी जाती ? वह अपने ही पुत्र का अपने हाथों से गला घोंटने वाली देखी जाती हैं। (अस्वामिकाः प्रकृतयः समृद्धा अपि निस्तरीतुं न शक्नुवन्ति १॥शा) बिना स्वामी की प्रजा समृद्ध होकर भी सङ्कट के समय स्वयम् अपना उद्धार नहीं कर सकती। ....