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________________ मित्रसमुद्देशः 115 . नित्य मित्र का लक्षणयः कारणमन्तरेण रक्ष्यो रक्षको वा भवति तन्नित्यं मित्रम् // 2 // बिना किसी कारण के ही जिनमें परस्पर रक्ष्य-रक्षक भाव होता है वह नित्य मित्र है। सहज मित्र का लक्षण(तत्सहज मित्रं यत् पूर्वपुरुषपरम्परायातः सम्बन्धः // 3 // ) पूर्वजों की परम्परा से जहां सम्बन्ध हो वह सहज मित्र है / कृत्रिम मित्र का लक्षणयवृत्तिजीवितहेतोराश्रितं तत् कृत्रिमं मित्रम् // 4 // ) जीविका अथवा प्राणरक्षा के लिए जो आश्रित होता है वह कृत्रिम मित्र है। ___ मित्र के गुण(व्यसनेषूपस्थानमर्थेष्वविकल्पः, स्त्रीषु परमं शौचं, कोपप्रसादविषये वाऽप्रतिपक्षत्वमिति मित्रगुणाः॥५॥) . मित्र के सङ्कटग्रस्त होने पर सहायतार्थ समुपस्थित होना, द्रव्य के संबन्ध में कपट हीन होना, स्त्री के संबन्ध में परम पवित्र भाव रखना, क्रोध आने पर मनावन की आशा न करना अथवा प्रतिकूल न होना यह मित्र के गुण हैं। __ मित्र के दोष( दानेन प्रणयः, स्वार्थपरत्वं, विपद्यपेक्षणम् , अहितसम्प्रयोगो, विप्रलम्भनगर्भप्रश्रयश्चेति मित्रदोषाः // 6 // दान के कारण प्रेम करना, स्वार्थपरता, विपत्ति के अवसर पर उपेक्षा कर देना, मित्र के अहितकारी शत्रु आदि से व्यवहार रखना, और कपट मिश्रित अर्थात् दिखावटी नम्रता का प्रदर्शन यह मित्र के दोष हैं / मंत्री भेद के कारण(स्त्रीसंगतिर्विवादोऽभीक्ष्णयाचनमप्रदानमर्थसम्बन्धः परोक्षदोषग्रहणं पैशून्याकर्णनञ्च मैत्रीभेदकरणानि // 7 // ) मित्र की स्त्री से समागम करना, मित्र से विवाद करना, बारम्बार पसा रुपया धादि मांगते रहना, उसे कुछ न देना, रुपये पैसे के लेन देन मादिका सम्बन्ध रखना, परोक्ष में ( पीठ पीछे ) दोषों की चर्चा करना, चोर उसकी चुगली सुनना इन सब कारणों से मित्रता भङ्ग होती है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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