________________ 110 नीतिवाक्यामृतम् .. क्षीणकोश की वृद्धि का उपाय-- (देवद्विजवणिजां धर्माध्वरपरिजनानुपयोगिद्रव्यभागैराव्यविधवानियोगिग्रामकूट गणिका-सङ्घ पाखण्डि-विभव-प्रत्यादानैः समृद्ध पौरजानपदद्रविण संविभाग - प्रार्थनैरनुपक्षयश्रीकरणमन्त्रिपुरोहितसामन्तभूपालानुनयगृहगमनाभ्यां क्षीणकोशः कोशं कुर्यात् // 14 // जिस राजा का कोश क्षीण हो गया हो उसे चाहिए कि वह देवता, ब्राह्मण और वणिक् जनों की ऐसी सम्पत्ति ग्रहण कर ले जो धर्म के काम में न आती हो, यज्ञादि के उपयोग में न हो, तथा कुटुम्ब पोषण में उपयोगी न हो तथा धनी, विधवा, धर्माधिकारी, गांव में लेन-देन का व्यापार करने वाला महाजन, वेश्या समूह और पाखंडियों का धन ग्रहण करके तथा अत्यन्त समृद्धिशाली नागरिकों और ग्रामीणों से कुछ धन मांग करके और जिनकी लक्ष्मी क्षीण न हुई हो अर्थात् वैभवशाली बने हों ऐसे मन्त्री पुरोहित, सामन्त, और भूमिधरों से विनयपूर्वक मांगकर तथा उनके घर जाकर उनसे मेलमिलाप बढ़ाकर उनसे धन लेकर इस प्रकार अनेक उपायों से अपने रिक्त कोश की पूत्ति करे। [इति कोशसमुद्देशः] 22. बलसमुद्देशः बल अर्थात् सैन्य का अर्थ-- (द्रविणदानप्रियभाषणाभ्यामरातिनिबारणेन यद्धि हितं स्वामिनं सर्वावस्थासु बलते संवृणोतीति बलम् // 1 // शत्रु का निवारण करके, प्रियभाषण और धन दान के द्वारा जिससे सभी अवस्था में स्वामी के हितों की सुरक्षा हो उसको बल कहते है ।(सन्य शक्ति की प्रबलता से ही राजा से अन्यराष्ट्र प्रियभाषण या मैत्री करते हैं और सहज रूप से कर आदि प्राप्त हो जाता है और शत्रु का संहार भी सेना ही करती है। सैन्य शक्ति मे हाथी का प्राधान्य-- बलेषु हस्तिनः प्रधानमङ्गम् , स्वैरवयवैरष्टायुधा हस्तिनो भवन्ति // 2 // बल चतुरङ्गिणी सेना में हाथी प्रधान अङ्ग है, हाथी अपने अङ्गों के कारण 'अष्टायुध' होते हैं / वह चारों परों से रौंदता है, दोनों दांतों से शत्र पर प्रहार करता है और पूंछ तथा सूंड से भी शत्रु को मारने में समर्थ होता