________________ कोशसमुद्देशः 106 * कोश वृद्धि की आवश्यकता कोशं वर्धयन्नुत्पन्नमर्थमुपयुञ्जीत // 3 // राजा को चाहिए कि वह कोश की वृद्धि करता हुआ ही प्राप्त धन का / उपयोग करे। (कुतस्तस्यायत्यां श्रेयांसि यः प्रत्यहं काकिण्यापि कोशं न वर्धः यति // 4 // ___ जो राजा प्रतिदिन एक कौड़ी भी जोड़कर कोश की वृद्धि नहीं करता रहता भविष्य में उसका कल्याण कैसे हो सकता है। कोशो हि भूपतीनां जीवितं न प्राणाः // 5 // ) राजाओं का वास्तविक प्राण अर्थात् जीवन उनका कोश ही होता है / (क्षीणकोशो हि राजा पौरजनपदानन्यायेन प्रसते ततो राष्ट्रशून्यता स्यात् // 6 // ) क्षीण कोश वाला राजा नागरिकों को अन्यायपूर्वक पीडित करता है जिससे राष्ट्र शून्य हो जाता है / लोग बस्ती छोड़-छोड़ कर भाग जाते हैं। . (कोशो राजेत्युच्यते न भूपतीनां शरीरम् / / 7 // कोश राजा कहा जाता है राजाओं का शरीर नहीं राजा कहा जाता। - द्रव्य की महत्ता(यस्य हस्ते द्रव्यं स जयति / / 8 / ) जिसके हाथ पैसा होता है वही जीतता है। धनहीनः कलत्रेणापि परित्यज्यते किं पुनर्नान्यैः // 6 // ) धनहीन व्यक्ति को उसकी स्त्री भी छोड़ देती है तो फिर औरों से वह क्यों न परित्यक्त होगा ? .. न खलु कुलाचाराभ्यां पुरुषः सेव्यतामेति // 10 // कुलीनता और सदाचार से पुरुष सेव्य नहीं होता अर्थात् जब तक पैसा न हो तब तक मनुष्य कुलीनता और सदाचार के कारण पूजित नहीं होता। स खलु महान् कुलीनश्च यस्यास्ति धनमनूनम् // 11 // महान् और कुलीन वही है जिसके पास प्रचुर धन है / (कि तया कुलीनतया महत्तया वा या न सन्तर्पयति परान् // 12 // ) ऐसी कुलीनता और महत्ता से भी क्या लाभ जिससे दूसरों का भलो न हो सके अथवा दूसरे सन्तुष्ट और परितृप्त न हों। (तस्य किं सरसो महत्त्वेन यत्र न जलानि // 13 // ) जिसमें जल ही न हो उस जलाशय की क्या महत्ता है?