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________________ नीतिवाक्यामृतम भ्रष्टाचार रोकने का उपाय(नित्यपरीक्षणं, कर्मविपर्ययः, प्रतिपत्तिदानं च नियोगिष्वर्थग्रहणोपायाः॥५॥ अधिकारियों द्वारा अन्यायोपार्जित धन को प्राप्त करने के लिये राजा के पास तीन उपाय हैं / हिसाब की नित्य जांच करते रहना, सौंपे गये काम की बदला-बदली करते रहना और समय-समय पर अधिकारियों को पुरस्कृत करते रहना। (नापीडिता नियोगिनो दुष्टवणा इवान्तः सारमुद्वमन्ति / / 56 / / जिस प्रकार दुषित फोड़े का भीतरी दोषयुक्त पदार्थ मवाद आदि बिना कसकर दबाये हुए नहीं निकलता उसी प्रकार बिना दण्ड के अधिकारी छिपाये हुए धन को नहीं देते। पुनः पुनरभियोगो नियोगिषु महीपतीनां वसुधारा / / 57 / / राजकीय आय का अपहरण करनेवाले अधिकारियों को पुनः पुनः भर्त्सना करते रहना राजा के लिये धन का स्रोत बन जाता है। (सन्निष्पीडितं स्नानवस्त्रं किं जहाति सार्द्रताम् / / 58 // एक बार निचोड़े गये स्नान-वस्त्र से क्या पूरा जल निकल जाता है ? 'देशमपीडयन बुद्धिपुरुषकाराभ्यां पूर्वनिबन्धमधिकं कुर्वन्नर्थमानौ लभते // 56 // देशवासियों को कष्ट न देकर जो अपने बुद्धि कौशल और उद्योग के द्वारा राज्य की सम्पत्ति को पूर्वापेक्षा अधिक कर सके वह अमात्य राजा के द्वारा सम्पत्ति और सम्मान दोनों ही प्राप्त करता है।) (यो यत्र कर्मणि कुशलस्तं तत्र विनियोजयेत् // 60 // जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगावे / अर्थात् आदमी के योग्यता के अनुकूल काम सौंपना राजा का कर्तव्य है।) (न खलु स्वामिप्रसादः सेवकेषु कार्यसिद्धिनिबन्धनं किन्तु बुद्धिपुरुषकारवेव // 61 // सेवक के द्वारा कार्य की सिद्धि स्वामी की कृपा मात्र से नहीं होती किन्त उसके लिये उसकी अपनी बुद्धि और उद्योग ही मूल कारण होते हैं। शास्त्रविदप्यदृष्टकर्मा कर्मसु विषादं गच्छेत् // 62 // कार्य का अनुभव न रहने पर शास्त्रों को जाननेवाला भी व्यक्ति किंकतंक विमूढ हो जाता है। ) अनिवेद्य भत्तन किञ्चिदारम्भं कुर्यादन्यत्रापत्प्रतीकारेभ्यः // 6 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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