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________________ 88 अमात्यसमुहेशः चाय में उपेक्षा भाव रखना, बुद्धि शून्यता, कार्यों को रोक रखना, प्राप्त द्रव्य को लेखा पुस्तक में न लिखना, और द्रव्य विनिमय-सोना मिले पर कोष में जमा करे चांदी, मिले मोहर रखे रुपया, इस तरह के छह अमात्य दोष हैं। (बहुमुख्यमनित्यं च करणं स्थापयेत् // 48 // __राजा को चाहिए कि वह अपने राज्य तन्त्र को सुचारु रूप से चलाने के लिये अनेक मुख्य अधिकारियों को नियुक्ति अस्थायी रूप में करें। एक ही व्यक्ति को स्थायी रूप से सर्वप्रमुख अधिकारी बना देने से वह कुछ भी अनर्थ कर सकता है।) (स्त्रीष्वर्थेषु च मनागप्यधिकारे न जातिसम्बन्धः // 46 // अपनी स्त्रियों और सम्पत्ति के विषय का थोड़ा भी अधिकार देते समय यह ध्यान रक्खे कि अधिकार पाने वाला जातीय सम्बन्धी न हो।) स्वपरदेशजावनपेक्ष्यावनित्यश्चाधिकारः॥५०॥ अधिकारी की नियुक्ति करते समय स्वदेशज परदेशज का ख्याल न करके अस्थायी अधिकार दे / अर्थात् योग्य अधिकारी हो चाहे वह अपने देश का हो या दूसरे देश का किन्तु नियुक्ति उसको अस्थायी हो।। विभागीय अध्यक्ष का पद(आदायक निबन्धक-प्रतिबन्धक-नीवीग्राहक राजाध्यक्षाः करणानि // 51 // आय, कर आदि ग्रहण करनेवाला, आय को लेखाबही में लिखनेवाला, उसकी जांच करनेवाला और आय-व्यय की शोध करने के अनन्तर बचे हुए द्रव्य को जमा करने वाला और राजाध्यक्ष-सर्वप्रमुख अधिकारी ये राजा के करण अर्थात् इतने प्रकार के विभागीय अध्यक्ष होते हैं।) __"नीवी" की परिभाषा आयव्ययविशुद्धं द्रव्यं नीवी / / 52 / / आय में से आवश्यक व्यय करने के पश्चात् बचा हुआ द्रव्य "नीवी" है। . आय-व्यय की जांच का नियमनीवीनिबन्धनपुस्तकग्रहणपूर्वकमायव्ययौ विशोधयेत् // 53 // बही को अपने अधिकार में लेकर तब 'आय-व्यय' की 'जांच पड़ताल' करे / आयव्ययविप्रतिपत्तौ कुशलकरणकार्यपुरुषेभ्यस्तद्विनिश्चयः // 54 // जब आय और व्यय में समानता हो और किसी कार्य विशेष के लिये अधिक व्यय करना हो तो चतुर कार्य पुरुषों से परामर्श कर व्यय का निश्चय करना चाहिए / उनके परामर्श से आय से अधिक भी व्यय कभी-कभी किया जा सकता है।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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