________________ अमात्यसमुद्दशः 101 स्वामी के ऊपर आनेवाली आपत्ति को दूर कर देने वाले कार्य के अतिरिक्त कोई भी कार्य स्वामी से बिना बताये हुए प्रारम्भ न करे।) (सहसोपचितार्थो मूलधनमात्रेणावशेषयितव्यः / / 64 // राज्य में यदि किसी व्यक्ति के पास अकस्मात् धन की वृद्धि हो तो राजा को चाहिए कि वह उसका मूल धन मात्र उसके पास रहने दे और शेष बढ़ा हुआ धन अपने कोष के लिये ले ले यतः अकस्मात् धनवृद्धि चोरी डाका जुआ आदि किसी अन्याय मार्ग से ही होती है। परस्परकलहो नियोगिषु भूभुजां निधिः / / 64 // अधिकारियों में परस्पर कलह होना राजा के लिये निधि प्राप्ति है / यतः परस्पर वैर होने से वे एक दूसरे की बुराई घुसखोरी षड्यन्त्र आदि राजा को बताते रहेंगे जिससे राजा को बहुधा उनका अन्याय का धन छीन लेने से धन प्राप्ति भी होगी और राजा को सब का भेद भी मालूम होता रहेगा। (नियोगिषु लक्ष्मीः क्षितीश्वराणां द्वितीयः कोषः // 6 // अधिकारियों के पास प्रचुर धन का होना राजा का अपना दूसरा कोश होने के समान है यतः राजा को आवश्यकता होने पर उनसे धन लिया जा सकता है। धान्य सङ्ग्रह की महत्ता. सर्व संग्रहेषु धान्यसङ्ग्रहो महान् // 66 // सब प्रकार के संग्रहों में धान्य ( अन्न ) का संग्रह श्रेष्ठ है। ___ यन्निबन्धनं जीवितं सकलः प्रयासश्च / / 67 // यतः अन्न के ही आधार पर मनुष्यमात्र का जीवन और समस्त प्रकार का उद्योग है। / न खलु मुखे प्रक्षिप्तं महदपि द्रव्यं प्राणत्राणाय यथा धान्यम् // 6 // मुख.में डाली गई महान् द्रव्यराशि जैसे सोने का टुकड़ा आदि से उस प्रकार प्राण रक्षा नहीं हो सकती जिस प्रकार अन्न के खाने से / कोदों की विशेषता'सर्वधान्येषु चिरंजीविनः कोद्रवाः // 6 // सब प्रकार के अन्नों में कोदों नाम का अन्न चिरकाल स्थायी अन्न है। अन्न सङ्ग्रह करने का क्रमअनवं नवेन वर्धयितव्यं व्ययितव्यं च // 70 // पुराने अन्न की वृद्धि नये अन्न से करे अर्थात् जब दूसरे वर्ष नया अन्न उत्पन्न हो उससे अपना भण्डार भरे और पुराने अन्न को खर्च कर डाले।