________________ 63. अमात्यसमुद्देशः (अनुपयोगिना महतापि किं जलधिजलेन // 6 // ___ समुद्र की उस विशाल जलराशि से क्या लाभ है जो खारी होने के कारण उपयोग में नहीं आ सकती। [इति स्वामिसमुद्देशः] 18. अमात्यसमुद्देशः ___ अमात्य पद को महत्ताचतुरङ्गयुतोऽपि नानमात्यो राजास्ति कि पुनरन्यः // 1 // हाथी, घोड़े, रथ और पैदल की चतुरङ्गिणी सेना से युक्त भी राजा बिना अमात्य के अपना अस्तित्व स्थिर नहीं रख सकता फिर अन्य के विषय में क्या कहा जाय ? नैकस्य कार्यसिद्धिरस्ति / / 2 // अकेले राजा को कार्यसिद्धि नहीं हो सकती। ( नोकचक्रं परिभ्रमति // 3 // रथ का अकेला पहिया नहीं घूमता। किमवातः सेन्धनोऽपि वह्निज्वलति // 4 // क्या बिना वायु के लकड़ी से युक्त भी आग कहीं जलती है ? अमात्य का स्वरूपस्वकर्मोत्कर्षापकर्षयोर्दानमानाभ्यां सम्पत्तिविपत्ती येषां तेऽमात्याः // 5 // अपने कर्म के अनुसार उन्नति और अवनति के अवसर पर राजा के द्वारा प्रदत्त दान-मानादि से जिनको हर्ष और विषाद हो वे अमात्य हैं।) अमात्य के मुख्य कर्तव्य(आयो व्ययः स्वामिरक्षा-तन्त्रपोषणं चामात्यानामधिकारः // 6 // आय और व्यय की देखभाल, गजा की सुरक्षा तथा सैन्य शक्ति का संरक्षण और पोषण ये चार अमात्य के मुख्य कर्तव्य हैं। आय-व्यय विषय का विचार(आयव्ययमुखयोर्मुनिकमण्डलुनिदर्शनमेव // 7 // आय और व्यय के विषय में मुनि का कमण्डलु दृष्टान्त रूप है / कमण्डलु में ऊपरी मुख चौड़ा और बड़ा होता है जिससे जल जल्दी भर जाता है और जल गिराने की टोंटी का मुख छोटा होता है जिससे गिराने में जल धीरे-धीरे