________________ 64 नीतिवाक्यामृतम् . करके देर में गिरता है / इसी प्रकार राज्य में आय का मुख अर्थात् साधन विशाल-अनेक होना चाहिए किन्तु व्यय नियमित और कम होना चाहिए।) (आयो द्रव्यस्योत्पत्तिमुखम् / / 8 / / आय द्रव्य की उत्पत्ति का द्वार है। . ___ यथा स्वामिशासनमर्थस्य विनियोगो व्ययः / / 1 / / स्वामी को आज्ञा के अनुकूल अर्थ का निकास व्यय है।) (आयमनालोच्य व्ययमानो वैश्रवणोऽप्यवश्यं श्रमणायतएव // 10 // ) आय का ध्यान न रखकर व्यय करने वाला कुबेर भी श्रमण अर्यात् भिक्षु बन जाता है। स्वामी शब्द का अभिप्राय१ राज्ञः शरीरं, धर्मः कलत्रमपत्यानि च स्वामिशब्दार्थाः / / 11 // * राजा का शरीर, उपके कर्त्तव्य और धर्म, पत्नियां और पुत्र-पुत्री स्वामि शब्द का आशय है।) तन्त्र का स्वरूप( तन्त्रं चतुरङ्गबलम् / / 12 / / हाथी, घोड़े, रथ अथवा अश्वारोही और पैदल इन चार प्रकार की सैन्य शक्ति का नाम तन्त्र है) अमात्य पद के अयोग्य व्यक्तियों का क्रमश: निरूपण। तीक्ष्णं बलवत्पक्षमशुचिं व्यसनिनमशुद्धाभिजनमशक्यप्रत्यावर्तनमतिव्ययशीलमन्यदेशायातमतिचिक्कणं चामात्यं न कुर्वीत / / 13 / / __जो बहुत उग्रस्वभाव वाला हो, जिसके दल या पार्टी में बहुत लोग हों, जो पवित्र और स्वच्छ ढंग से न रहता हो, जिसको धून मद्यपान आदि का कोई व्यसन हो, जिसका कुल शुद्ध न हो, अशक्य प्रत्यावर्तन अर्थात् हठी ऐसा कि किसी काम में लगा दिया और फिर उसे रोकना चाहें तो रुके नहीं, और जो अत्यन्त व्यय करने वाला हो, दूसरे देश से आया हो, और अत्यन्त चिक्कण अर्थात् बहुत ही मृदु हो ऐसे आदमियों को राजा अमात्य न बनावे / / तीक्ष्णोऽभियुक्तः स्वयं म्रियते भारयति वा स्वाभिनम् / / 14 // अत्यन्त उग्रस्वभाववाला व्यक्ति यदि मन्त्रिपद पर नियुक्त होता है तो या तो वह स्वयं कभी क्रोधवश आत्महत्या आदि कर लेता है अथवा स्वामी को ही क्रोधवश मार डालता है / (बलवत्पक्षो नियोग्यभियुक्तो व्यालगज इव समूलं नृपाधिपमुन्मूलयति // 15 // )