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________________ छह वर्षधर पर्वतों पर स्थित छह महाद्रह व उनमें से निकलती 14 महानदियों न ऐरावत क्षेत्र / शिखी पुंडरिक द्रह पर्वत रक्तवती नदी रुप्यकुला नदी सुवर्णकुला नदी महा पुंडरिक द्रह रम्यक क्षेत्र नारीकांता नदी नरकांता नदी नीलवंत पर्वत केसरी द्रह पश्चिम महाविदेह क्षेत्र पूर्व पहाविदेह क्षेत्र सीतोदा नदी सीता नदी मेरु पर्वत | तिगिच्छ द्रह हरिवर्ष क्षेत्र हरिकांता नदी हरिसलिला नदी शीतोदाप्रपात कुण्ड के उत्तरी तोरण से निकलकर शीतोदा महानदी आगे देवकुरू क्षेत्र में होती हिरण्यवंत क्षेत्र हुई चित्र-विचित्र कूटों, पर्वतों, निषध, देवकुरू, सूर, सुलस एवं विद्युत्प्रभ नामक द्रहों को विभक्त करती हई जाती है। उस बीच उसमें 84,000 नदियाँ आ मिलती है। फिर भद्रशाल वन की ओर आगे बढ़ती हुई जब मेरू पर्वत दो योजन दूर रह जाता है, तब वह पश्चिम की ओर मुड़ती है। नीचे विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत को भेद कर मन्दर पर्वत के पश्चिम में अपर विदेहक्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई बहती है। उस बीच उसमें 16 चक्रवर्ती विजयों में से एक-एक से 28,000-28,000 नदियाँ आ मिलती है। इस प्रकार 4,48,000 ये तथा 84,000 पहले की कुल 5,32,000 नदियों से आपूर्ण वह शीतोदा महानदी नीचे चित्र क्र.45 जम्बूद्वीप के पश्चिम दिग्वी जयन्त द्वार की जगती को विदीर्ण कर पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है। शीतोदा महानदी अपने उद्गम-स्थान में पचास योजन चौड़ी तथा एक योजन गहरी है। तत्पश्चात् वह मात्रा में क्रमशः बढ़ती-बढ़ती जब समुद्र में मिलती है, तब 500 योजन चौड़ी तथा 10 योजन गहरी हो जाती है। वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों द्वारा परिवृत है। महाविदेह क्षेत्र जंबूद्वीप के ठीक मध्यभाग में महाविदेह क्षेत्र है। इसके एक ओर उत्तर में 'नीलवन्त' और दूसरी ओर / दक्षिण में निषध' नामक वर्षधर पर्वत है। इन दोनों पर्वतों ने महाविदेह क्षेत्र की सीमा बाँध रखी है। इस क्षेत्र को 'महाविदेह' इसलिये कहा जाता है कि जंबूद्वीप में भरतादि कुल सात क्षेत्र है, उन सबसे आकार एवं परिधि में यह विस्तृत है। अथवा 'विदेह' अर्थात् 'देहरहित अवस्था' इस क्षेत्र में सदैव मुक्ति में जाने महा हिमवंत. महापद्म द्रह हिमवंत क्षेत्र रोहितांशा नदी रोहिता नदी सिन्धु नदी गंगा नदी लघु हिमवंत पर्वत पद्म द्रह 64 AAAAAAAसचित्र जैन गणितानुयोग |
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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