________________ _ विकटापाती वृत्त वैताढ्य-हरिवर्ष क्षेत्र के बीचोंबीच यह गोल आकार का वैताढ्य पर्वत है। इसके पूर्व दिशा में 'हरिसलिला' नाम महानदी और पश्चिम में 'हरिकान्ता महानदी' बहती है। इसकी चौड़ाई, ऊँचाई गहराई, परिधि आदि सब शब्दापाती वृत्त वैताढ्य के समान है। विशेष, यहाँ अरूण' नामक ऋद्धिशाली देव की मेरूपर्वत के दक्षिण की ओर अन्य जंबूद्वीप में राजधानी है। निषध पर्वत-हरिवर्ष क्षेत्र के बाद उत्तर की ओर पृथ्वी से 400 योजन ऊँचा, 100 योजन जमीन में गहरा, पूर्व-पश्चिम में 94,156 योजन 2 कलां लम्बा तथा उत्तर दक्षिण में 16,842 योजन 2 कलां चौड़ा माणिक के समान रक्तवर्ण वाला 'निषध पर्वत' है। इसकी दक्षिणी जीवा 20,165-2/ योजन एवं धनुः पृष्ठ 1,24,346-9 योजन का है। यह रूचक-स्वर्ण के आभूषण के समान आकृति का है। इसके बहुत से कूट-निषध अर्थात् वृषभ के आकार सदृश होने से इसे 'निषध पर्वत' कहा जाता है। इस पर पल्योपम की आयुष्य वाले 'निषेधदेव' का भी निवास है। निषध वर्षधर पर्वत के नौ कूट हैं-(1) सिद्धायतनकूट, (2) निषधकूट, (3) हरिवर्ष कूट, (4) पूर्वविदेहकूट, (5) हरिकूट, (6) धृतिकूट, (7) शीतोदाकूट, (8) अपरविदेहकूट तथा (9) रूचककूट। _तिगिंछ द्रह-निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर समतल भूभाग के मध्य 'तिगिंछ' नाम का द्रह है। वह 4,000 योजन लम्बा 2,000 योजन चौड़ा तथा 10 योजन जमीन में गहरा है। इस पर पल्योपम की स्थिति वाली 'धृति' नामक देवी का निवास है। यहाँ पद्मों की संख्या पद्मद्रह की अपेक्षा चार गुनी अर्थात् 4,82,00,480 है। शेष सारा वर्णन पद्मद्रह के समान है। इस द्रह से दो नदियाँ निकलती हैं-(1) हरिसलिला और (2) सीतोदा। (1) हरिसलिला नदी-यह तिगिंछद्रह के दक्षिणी तोरण से निकली है। वह दक्षिण में उस पर्वत पर 7,421 योजन एक कलां बहती है। फिर हरिप्रपात कुण्ड में गिरते हुए उसका प्रवाह ऊपर से नीचे तक कुछ अधिक 400 योजन का होता है। शेष जिहिका, कुण्ड, द्वीप एवं भवन का वर्णन हरिकान्ता महानदी के समान है। हरिवर्ष क्षेत्र के मध्य में होती हुई यह नदी जम्बूद्वीप की जगती को चीरकर 56,000 नदियों के साथ पूर्वी लवण समुद्र में मिल जाती है। (2) सितोदा महानदी-यह तिगिंछद्रह के उत्तरी तोरण से निकलकर उस पर्वत पर 7,421 योजन एक कलां बहती है। वेग पूर्वक 'शीतोदाप्रपातकुण्ड' में जब गिरती है तब ऊपर से नीचे तक उसका प्रवाह कुछ अधिक 400 योजन का होता है। इस प्रपात की जिबिका चार योजन लम्बी, 50 योजन चौड़ी और एक योजन मोटी है। प्रपात की लम्बाई-चौड़ाई 480 योजन एवं परिधि 1,518 योजन है। शीतोदा प्रपातकुण्ड के बीचों बीच 'शीतोदा' नामक विशाल द्वीप है, वह जल के ऊपर दो कोस ऊँचा उठा हुआ है। वहाँ पल्योपम स्थिति वाली शितोदादेवी' का आवास है। (चित्र क्रमांक 45) सचित्र जैन गणितानुयोग 63