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________________ खण्डप्रपात गुफा का उत्तरी द्वार सेनापति द्वारा खुलवाते हैं। यहाँ भी तमिस्रागुफा के समान ही काकिणी रत्न से 49 मण्डल बनाते हुए उमग्नजला व निमग्नजला नदियों को पार कर गुफा के दक्षिणी द्वार से निकलते हैं। वहाँ से गंगा महानदी के पश्चिमी तट पर नौ निधिरत्नों को उद्दिष्ट कर तेले का तप करते हैं। नवनिधियों की प्राप्ति के पश्चात् वहाँ से चक्रवर्ती के आदेश से सेनापति रत्न भरतक्षेत्र के कोण स्थित दूसरे प्रदेशों को, जो पश्चिम दिशा में गंगा से, पूर्व एवंदक्षिण दिशा में समुद्रों से और उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत की सीमा के हैं, उन सम-विषम कोणस्थ प्रदेशों पर विजय-वैजयन्ती फहराता है। यह छठा खण्ड कहा जाता है। अंत में, चक्रवर्ती वहाँ से दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्यकोण) में तेले की तपस्या के साथ अपनी राजधानी विनीता में पूर्वी द्वार से ही प्रवेश करते हैं। राजधानी में महोत्सव पूर्वक छहों खण्ड के राजा-महाराजा चक्रवर्ती का राज्याभिषेक महोत्सव मनाकर उसे 'चक्रवर्ती' पद प्रदान करते हैं। उस समय भी चक्रवर्ती तेला तप करते हैं। चक्रवर्ती पद का प्रमोदोत्सव 12 वर्ष तक चलता है। दिग्विजय यात्रा में चक्रवर्ती 13 बार तेला तप करते हैं। (चित्र क्रमांक 37) __चक्रवर्ती के षट्खण्ड साधना के मुख्य केन्द्र और 13 तेले दिग्विजय यात्रा में चक्रवर्ती-3 तीर्थ, 2 नदी की देवी, 2 गुफा के देव, 2 पर्वत के देव, 1 विद्याधर राजा, 1 नवनिधि, 1 वनिता प्रवेश और 1 राज्याभिषेक के अवसर पर-इस प्रकार कुल 13 तेले करते हैं। चक्रवर्ती की षट्खण्ड विजय यात्रा का क्रम पद्म द्रह चुल्लहिमवंत देव भवन प्रपात कुड गंगा देवी भवन ऋषभकूट खंड 3 खंड खंड4 9 उत्तरार्ध सिंधु निष्कूट 8कृतमाल देव भवन उत्तरार्ध गंगा निष्कूट वैताढ्य कुमार भवन नृतमाल देव भवन गंगा दक्षिणार्ध सिंधु निष्कूट खंड 2 5 . दक्षिणार्ध गंगा निष्कूट खंड 6 सिंध 15 नदी खंड 1 सिंधुदेवी भवन प्रवेश अयोध्या नवनिधि निर्गमन मागध चित्र क्र.37 वरदाम सचित्र जैन गणितानुयोग 45
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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