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________________ दो गुफा के द्वार खोलने के लिये 2 तेले सेनापति करता है। चुल्लहिमवंत पर्वत के देव के तेले के साथ ही ऋषभकूट पर नामांकन किया जाता है। गुफावर्ती दो-दो नदी ऐसे कुल चार नदियों पर स्थायी पुल चक्रवर्ती के आदेश से वर्धकी रत्न बनाता है और दोनों गुफाओं को प्रकाशित करने केलिए 49-49 स्थायी मंडल चक्रवर्ती बनाता है। तीन तीर्थ और चुल्लहिमवंत पर्वत-इन चार स्थानों पर ही चक्रवर्ती तीर फेंकता है। चुल्लहिमवंत पर 72 योजन दूर देव भवन में तीर फैंकने के लिए चक्रवर्ती पर्वत की ऊँचाई के बराबर अर्थात् 100 योजन जितना ऊँचा वैक्रिय शरीर बनाता है। चक्रवर्ती के चौदहरत्न (1) चक्ररत्न-यह सेना के आगे-आगे आकाश में 'गरणाट शब्द करता हुआ चलता है और छह खण्ड साधने का रास्ता बताता है। (2) छत्ररत्न-यह सेना के ऊपर 12 योजन लम्बे, 9 योजन चौड़े छत्र के रूप में परिणत हो जाता है और शीत, ताप तथा वायु आदि के उपसर्ग से रक्षा करता है। (3) दण्डरत्न-विषम स्थान को सम करके सड़क जैसा रास्ता बनाता है और वैताढ्य पर्वत की दोनो गुफाओं के द्वार खोलता है। (4) खड्गरत्न-यह 50 अंगुल लम्बा, 16 अंगुल चौड़ा और आधा अंगुल मोटा, अत्यन्त तीक्ष्ण धार वाला होता है। हजारों कोसों की दूरी पर स्थित शत्रु का सिर काट डालता है। (5) मणिरत्न-चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा होता है। इसे ऊँचे स्थान पर रखने से दो योजन तक चन्द्रमा के समान प्रकाश फैल जाता है। अगर हाथी के मस्तक पर रख दिया जाय तो सवार को किसी प्रकार का भय नहीं होता। (6) काकिणीरत्न-छहों ओर से चार-चार अंगुल लम्बा-चौड़ा, सुनार के ऐरन के समान, 6 तले, 8 कोने और 12 हांसे वाला तथा 8 सोनैया भर वजन का होता है। इससे वैताढ्य पर्वत की गुफाओं में एक-एक योजन के अन्तर पर 500 धनुष के गोलाकार 49 मंडल किये जाते हैं। उसका चन्द्रमा के समान प्रकाश जब तक चक्रवर्ती जीवित रहते हैं, तब तक बना रहता है। (7) चर्मरत्न-यह दो हाथ लम्बा होता है। यह 12 योजन लम्बी और 9 योजन चौड़ी नौका रूप हो जाता है। चक्रवर्ती की संपूर्ण सेना इस पर सवार होकर गंगा और सिंधु जैसी महानदियों को पार कर लेती है। ___(8) सेनापतिरत्न-बीच के दोनों खण्डों को चक्रवर्ती स्वयं जीतता है और चारों कोनों के चारों खण्डों को चक्रवर्ती का सेनापति जीतता है। यह वैताढ्य पर्वत की गुफाओं के द्वार दंड का प्रहार करके खोलता है और म्लेच्छों को पराजित करता है। (9) गाथापतिरत्न-यह चर्मरत्न को पृथ्वी के आकार का बनाकर, उन पर 24 प्रकार का धान्य और सब प्रकार का मेवा-मसाला,शाक-सब्जी आदि दिन के पहले पहर में लगाता है, दूसरे पहर में सब पक जाते हैं उन्हें तीसरे पहर में तैयार करके चक्रवर्ती की संपूर्ण सेना को खिला देता है। 46. सचित्र जैन गणितानुयोग
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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