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________________ गुफाएँ नदियाँ और प्रकाश मंडल वैताढ्य पर्वत * -21 योजन . .. -21 योजन - पश्चिमी दीवार पर 24 प्रकाश मंडल 4योजन दक्षिण द्वार 4 योजन4 योजन4 योजन उन्मग्नजला नदी 2 यो. निमग्नजला नदी उत्तरी द्वार पूर्वी दीवार पर 25 प्रकाश मंडल 50 योजन 63 यो.→ वैताढ्य पर्वत चित्र क्र.34 विद्याधर श्रेणियाँ-वैताढ्य पर्वत पर 10 योजन ऊपर जाने पर यह पर्वत दोनों ओर से 10-10 योजन - घट गया है, जिससे दोनों और समतल भूमि बन गई है वहाँ पर्वत के बराबर लम्बी और 10 योजन चौड़ी दो विद्याधर श्रेणियाँ हैं। दक्षिण श्रेणी में गगनवल्लभ आदि 50 नगर तथा उत्तर श्रेणी में रथनूपुर चक्रवाल आदि 60 नगर (राजधानियाँ) हैं। (क्योंकि दक्षिण तरफ की मेखला जगती की गोलाई के कारण थोड़ी छोटी है, जबकि लघु हिमवंत पर्वत के ओर उत्तर दिशा की मेखला थोड़ी बड़ी है) इस प्रकार दोनों श्रेणियों की राजधानियों की संख्या 110 हैं। ये नगर एक श्रेणीबद्ध बने हुए हैं। यहाँ महान पराक्रमी वैभवशाली और रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि हजारों विद्याओं के धारक विद्याधर मनुष्य' रहते हैं। आभियोगिक श्रेणियाँ-विद्याधर श्रेणियों से दस योजन ऊपर दस योजन चौड़ी दो श्रेणियाँ और हैं, वहाँ शक्र, लोकपाल आदि के आज्ञापालक दस प्रकार के जृम्भक देवों के आवास हैं-(1) अन्नमुंभक-अन्न के रक्षक, (2) पान जुंभक-पानी के रक्षक, (3) लयन जुंभक-सुवर्ण आदि धातुओं के रक्षक, (4) शयन मुंभक-मकान रक्षक, (5) वस्त्र मुंभक-वस्त्र के रक्षक, (6) फल जुंभक-फलों के रक्षक, (7) फूल मुंभक-फूलों के रक्षक, (8) फल-फूल मुंभक-साथ रहे हुए फूलों और फलों के रक्षक, (9) अविपत मुंभक-पत्र-भाजी के रक्षक,(10) बीज मुंभक-बीज, धान्य के रक्षक। _ये देव वाणव्यंतर जाति के हैं। अपने-अपने नाम के अनुसार अन्न, पानी आदि उक्त वस्तुओं की रक्षा करने के लिये प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल परिभ्रमण करते हैं। इन दसों जृभक देवों की देह 7 हाथ एवं आयुष्य एक पल्योपम है। तीर्थंकर भगवान दीक्षा से पूर्व जब वर्षीदान देते हैं, तो ये देव प्रतिदिन 1 करोड़ 8 लाख स्वर्ण-मुद्राओं से उनका भंडार भर देते हैं। तीर्थंकर भगवान का जहाँ पारणा होता है वहाँ फूल, वस्त्र आदि की वृष्टि तथा कम से कम 1,25,000 स्वर्ण-मुद्रा एवं उत्कृष्ट से साढ़े बारह करोड़ स्वर्ण-मुद्रा की वृष्टि भी जुंभक देव करते हैं। ऋषभकूट पर्वत-वैताढ्य पर्वत से उत्तर में चुल्लहिमवंत पर्वत की तलहटी में गंगा और सिन्धु के प्रपात कुण्ड के मध्य उत्तरार्ध भरत क्षेत्र के चौथे खण्ड में ऋषभकूट नामक पर्वत है। वह 8 योजन का ऊँचा 2 योजन गहरा, मूल में 8 योजन चौड़ा, बीच में 6 योजन चौड़ा तथा ऊपर 4 योजन चौड़ा है। मूल में कुछ अधिक 25 सचित्र जैन गणितानुयोग 39
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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