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________________ श्रीदेवी का भवन पद्मद्रह मुख्य कमल अन्य कमल अन्य देवी के भवन सिंध नदी धनानि आधा यो. पानी से ऊपर गंगा नदी योजन परिधि युक्त तथा ऊपर 2 योजन कुछ अधिक की परिधि है। गौपुच्छ की आकृति वाला है। चक्रवर्ती जब दिग्विजय करते हुए यहाँ आते हैं, तब इस पर्वत पर अपना नाम अंकित करते हैं। चुल्लहिमवंत पर्वत और पद्मद्रह-भरत क्षेत्र की सीमा पर उत्तर की ओर चुल्लहिमवंत पर्वत है, जो 100 योजन ऊँचा, 25 योजन जमीन में गहरा, 24,932 योजन लम्बा, 1,052 योजन 12 कलां (योजन का 19वाँ भाग) का चौड़ा है। यह पीतस्वर्णमय है तथा पूर्व और पश्चिम दोनों ओर से लवण समुद्र को छुए हुए है। पर्वत के मध्य में 1,000 योजन लम्बा, 500 योजन चौड़ा और 10 योजन गहरा 'पद्म' नाम का द्रह (कुण्ड) है। पद्मद्रह के ठीक मध्य में एक योजन लम्बा-चौड़ा, 10 योजन जल में गहरा व आधा योजन जल से ऊपर विविध मणि रत्नमय एक विशाल पद्म है। इसकी कर्णिका पर श्रीदेवी' का आवास है। श्रीदेवी की आयु एक पल्योपम की है। उनके 4,000 हजार सामानिक देव हैं, 16,000 आत्मरक्षक देव, 8,000 आभ्यन्तर परिषद के देव 12000 बाह्य परिषद के देव. 7 अनीकनायक देव, 4 महत्तरी देवियाँ, 1,20,00,000 आभियोगिक देव हैं। इन सबके रहने के लिए मुख्य कमल के चारों ओर कुल 1,20,50,120 कमल पाँच घेराव में है। प्रत्येक घेराव के कमल प्रथम घेराव की अपेक्षा लम्बाई-चौड़ाई में आधे-आधे हैं। पद्मद्रह से तीन महानदियाँ निकलती हैं(1) गंगा, (2) सिंधु और (3) रोहितांशा। (चित्र क्रमांक 35) (1) गंगा महानदी-गंगा महानदी चित्र क्र.35 'पद्मद्रह' के उत्तरी तोरणद्वार से निकली है। वह पर्वत पर 500 योजन बहती है। गंगावर्तकूट के पास से पुनः मुड़कर 523 योजन 3 कलां दक्षिण की ओर बहती है अर्थात् पर्वत के किनारे तक आ जाती है। वहाँ मगर के समान खुला हुआ मुँह जैसी जिह्विका है, उसमें से यह वेगपूर्वक उछलती-कूदती 'गंगाप्रपात कुण्ड' में जाकर गिरती है। पर्वत की ऊँचाई 100 योजन की होने से जल प्रपात प्रारम्भ में मोड़ लेता है, उस समय उसकी लम्बाई चुल्लहिमवन्त पर्वत के शिखर से प्रपात कुण्ड तक कुछ अधिक सौ योजन होती है। __गंगाप्रपात कुण्ड 60 योजन लम्बा-चौड़ा एवं 10 योजन गहरा है। उसकी परिधि 190 योजन से कुछ अधिक है। वह स्वच्छ, सुकोमल और हीरकमय पाषाणयुक्त तटवाला है। उसके पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम की ओर तीन-तीन सीढ़ियाँ तोरणद्वारों से युक्त है। गंगाप्रपात कुण्ड के मध्य 8 योजन लम्बा-चौड़ा, जल से दो कोस ऊँचा, कुछ अधिक 25 योजन के विस्तार में 'गंगाद्वीप' है, वहाँ ऋद्धिशालीनि 'गंगादेवी' का एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और कुछ कम एक कोस ऊँचा आवास स्थान (भवन) है। ___ गंगाप्रपातकुण्ड के दक्षिणी तोरण से आगे बढ़ती हुई गंगा नदी जब आगे बढ़ती है, तब वैताढ्य पर्वत तक पहुँचते हुए 7 हजार नदियाँ उसमें और आ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर खण्डप्रपात गुफा होती हुई, वैताढ्यपर्वत को चीरती हुई दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की ओर जाती है, उसके ठीक मध्यभाग से बहती हुई पूर्व की A AAAAAसचित्र जैन गणितानुयोग न APPLINAMAMIERE चडुनिमायापान 10 योजन मूल वन रत्नमय चूल हिमवत पर्वत 40
SR No.004290
Book TitleJain Ganitanuyog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherVijayshree Sadhvi
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size38 MB
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