________________ ग्रंथ की साज-सज्जा, चित्रांकन, प्रकाशन आदि की दृष्टि से अथ से इति पर्यन्त सजाने-संवारने की कला में निपुण भाई संजय सुराणा का आभार मानना उनकी कला का अपमान करना है। मैं प्रमुदित मन से उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ। ग्रंथ के प्रूफ संशोधन एवं शुद्धिकरण हेतु महावीर नगर इंदौर की सुज्ञा युवती रत्ना मनीषा सुराणा का आत्मीयता पूर्ण प्रतिभा सम्पन्न सहयोग हृदय की गहराईयों में अंकित हो गया है। वैसे ही ग्रंथ प्रकाशन में गुरुभक्त श्री प्रवीण जैन बंधु त्रिपुटी (अगरबत्ती परिवार, इन्दौर) का प्रमोदभाव, अनन्य गुरुभक्त सुश्रावक प्रकाश बाफना-निर्मला बाफना (बैंगलोर) का समर्पण भाव, श्री महावीर प्रसाद जैन (झांसी), श्रीमान् चम्पालाल जी सा. मकाणा एवं श्रीयुत विकास भंडारी (बैंगलोर) की आस्था, जैन कॉन्फ्रेंस के निवर्तमान अध्यक्ष श्री केसरीमल जी बुरड़, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाई श्री सुभाष जी ओसवाल के साथ-साथ मातेश्वरी श्रीमती रतनदेवी जी मेहता एवं अन्य श्रुत प्रेमी, श्रुत अनुमोदक सभी दानदाताओं का श्रद्धापूर्ण अनुदान ग्रंथ रूपी माला में मौक्तिक के समान अनुस्यूत है, उन सभी के प्रति मैं मंगल कामना प्रेषित करती हूँ। अत्यंत सावधानी रखने पर भी पाठ भेद, दृष्टिभेद, लिपिभेद प्रिंट की अशुद्धि आदि के कारण त्रुटियाँ सम्भावित है। अतः सुधी पाठक हमें सूचित करें, ताकि आगामी संस्करण में उनका सुधार हो सके। यह ग्रंथ मुमुक्षु पाठकों की तत्त्व जिज्ञासा को संतुष्ट करे, लोकभावना को पुष्ट करे, सर्वज्ञ के ज्ञान की अगाधता का बोध कराए, अरिहंत देव के प्रति दृढ़ आस्थावान बनाए, इसी मंगल मनीषा के साथ..... / सर्व मंगल मांगल्यम्, सर्व कल्याणक कारणं। प्रधानं सर्वधर्माणाम्, जैन जयति शासनम्॥ जिनशासन सदैव जयवन्त हो! जयवन्त हो!! (xii)