________________ तारा विमान का मेरु आदि से अंतर-ताराओं के विमान मेरु पर्वत से 1121 योजन दूर रहकर परिभ्रमण करते हैं। लोकान्त से ये 1111 योजन दूर है। समपृथ्वी से 790 योजन से लेकर 900 योजन अर्थात् 110 योजन तारामंडल के विमान हैं। एक तारा विमान से दूसरे तारा विमान का अंतर-जंबूद्वीप में एक तारा विमान से दूसरे तारा विमान का अंतर पर्वत आदि का व्याघात न हो तो जघन्य 500 धनुष तथा उत्कृष्ट 2 कोस का है। यदि व्याघात हो तो जघन्य 266 योजन तथा उत्कृष्ट 12 हजार 242 योजन का है। वह इस प्रकार है-निषध और नीलवंत पर्वत भूमि से 400 योजन ऊँचे और इन पर्वतों के ऊपर 500 योजन ऊँचे नौ-नौ कूट (शिखर) हैं। इनकी चौड़ाई 250 योजन है। कूटों के दोनों ओर 8-8 योजन की दूरी पर इनका संचरण होने से 8 + 250 + 8 = 266 योजन का जघन्य व्याघात कहा है। उत्कृष्ट व्याघात मेरु पर्वत से पड़ता है। क्योंकि मेरूपर्वत से एक (पूर्व) दिशा में 1121 योजन दूर तारामंडल परिभ्रमण करता है, तो उसके सामने की (पश्चिम) दिशा में भी 1121 योजन दूर तारामंडल है। दोनों ओर के 1121 + 1121 के साथ मेरू का व्यास 10,000 योजन जोड़ने पर एक तारा से दूसरे तारा का अंतर (मेरू के व्याघात अपेक्षा) 12 हजार 242 योजन प्रमाण है। इसी प्रकार नक्षत्रों का अंतर भी जान लेना चाहिये। (चित्र क्रमांक 67) एक तारे से दूसरे तारे का अन्तर -10000 योजन 1121 योजन 1121 योजन उत्कृष्ट व्याघात 12242 योजन निर्व्याधात अंतर जघन्य 500 धनुष्य ......... 8 योजन 8योजन 250 योजन 266 योजन व्याघात अंतर जघन्य मध्यम 1गाऊ ........... * 900 योजन ऊँचाई -500 योजन कूट उत्कृष्ट 2 गाऊ ..........* निषध पर्वत नीलवंत पर्वत पर वेत 400 योजन चित्र क्र.67 106 106 AAAAAAसचित्र जैन गणितानुयोग 46